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प्रेक्षाध्यान साधना
मानव का मस्तिष्क ज्ञान कोषों का भंडार है । उसमें लाखों-करोड़ों की संख्या में छोटे-छोटे ज्ञान कोष हैं। उन ज्ञान कोषों में अतीन्द्रिय ज्ञान की क्षमता प्रसुप्त अवस्था में पड़ी रहती है । साधारणतया वे जागृत और सक्रिय नहीं होते । अनिमेष प्रेक्षा उन ज्ञान कोषों को तथा ज्ञान तंतुओं को जागृत करने का एक प्रभावशाली साधन है ।
साधक, यदि एक रात्रि तक अनिमेष - प्रेक्षा की साधना कर ले तो उसे केवलज्ञान की भी प्राप्ति हो सकती है । किन्तु साधारण साधक यदि इसकी नियमित रूप से कुछ मिनट प्रतिदिन ही साधना करे तो उसको भी अतीन्द्रिय ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है ।
अनिमेष प्रेक्षा ज्ञान के कपाटों का उद्घाटन करती है ।
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(६) वर्तमान क्षण की प्रक्षा
यह काल की अपेक्षा से योगों (मन-वचन-काय) में होने वाले प्रकंपनों की प्रेक्षा है । प्रकंपन कर्मास्रव के निमित्त बनते हैं और प्रतिपल प्रतिक्षण होते रहते हैं । वर्तमान क्षण की प्रेक्षा करने वाला साधक वर्तमान में ही जीता है, उसी को देखता - जानता है । भगवान महावीर ने कहा
खणं जाणाहि पंडिए
अर्थात् - क्षण को जानने वाला ही ज्ञानी होता है ।
ज्ञानी साधक न अतीत काल के संस्कारों की स्मृति करता है और न भविष्य की कल्पनाएँ ही संजोता है। वर्तमान क्षण की प्रेक्षा करने वाला ज्ञानी साधक इन दोनों से ही बच जाता है ।
भूतकाल की स्मृति और भविष्य काल संबंधों कल्पनाएँ, राग-द्वषों का प्रमुख कारण हैं। वर्तमान क्षण की प्रेक्षा करने वाला साधक इन से तो बच ही जाता है, साथ ही वर्तमान क्षण की राग-द्व ेषरहित सिर्फ प्रेक्षा करने से - देखने-जानने से वह वर्तमान में राग-द्वेषरहित हो जाता हैं; और राग-द्वेषरहित होना ही संवर हैं, आस्रव का निरोध है और साथ ही कर्मबंध का भी अभाव है ।
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- ( आचारांग सूत्र )
वर्तमान में जीना ही भावक्रिया है और भावक्रिया स्वयं ही साधना है प्रथा स्वयं ही ध्यान है; क्योंकि भावक्रिया का अभिप्राय ही यह है कि हृदय उस क्रिया की भावना से भावित हो, मन उस क्रिया में रम जाये - उसे छोड़कर अन्यत्र कहीं भी न जाये, इन्द्रियाँ उस क्रिया के प्रति समर्पित हो जायँ ।
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