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________________ २०६ जैन योग : सिद्धान्त और साधना चैतन्य-शक्ति के द्वारा प्राण-शक्ति का संचालन होता है। प्राण-शक्ति के द्वारा मन, नाड़ी संस्थान और संपूर्ण सूक्ष्म तथा स्थूल शरीर का संचालन होता है। दूसरे शब्दों में इसे यों भी कह सकते हैं कि बाह्य दृष्टि से श्वास द्वारा नाड़ी संस्थान, सूक्ष्म शरीर और प्राण-शक्ति तक साधक पहुँचता है । __वस्तुतः श्वास शरीर की ही एक क्रिया है । शरीर के विभिन्न अवयव, श्वास प्रणाली (Respiratory systam), श्वास लेते और छोड़ते समयश्वासोच्छ्वास के समय गतिशील होते हैं । इन अवयवों में विकृति आजाने से मनुष्य को श्वास लेने में कठिनाई हो जाती है। प्राणायाम की साधना में हठयोगी श्वास का निरोध भी कर लेते हैं। किन्तु प्रेक्षाध्यान का साधक श्वास का निरोध नहीं करता, अपितु उसको देखता है तटस्थ द्रष्टा के समान । श्वास-प्रेक्षा द्वारा साधक प्राणशक्ति और तेजस् शरीर के स्पन्दनों को देखता है। साधक श्वासोच्छ्वास क्रिया दो प्रकार से कर सकता है(१) सहज-प्राकृतिक रूप से जिस प्रकार श्वासोच्छ्वास क्रिया होती है और (२) प्रयत्न द्वारा। प्रयत्न द्वारा श्वासोच्छ्वास क्रिया साधक दो प्रकार से कर सकता है (१) दीर्घश्वास (लम्बे साँस लेना)। (२) लयबद्ध श्वास (प्राणायाम)। सर्वप्रथम साधक दीर्घश्वास का अभ्यास करता है और जब दीर्घश्वास में अभ्यस्त हो जाता है तो वह लयबद्ध श्वासोच्छ्वास का अभ्यास करता है। लयबद्ध श्वासोच्छ्वास में पूरक, कुम्भक और रेचक-प्राणायाम के तीनों अंगों की साधना करता है। पूरक, कुम्भक और रेचक में १:४:२ का अनुपात रखता है । मान लीजिये, उसने १० सैकिण्ड में पूरक किया तो ४० सैकिण्ड तक कुम्भक करेगा और २० सैकिण्ड में रेचक । जब साधक इन क्रियाओं में निष्णात हो जाता है, उसे पूरा अभ्यास हो जाता है तो वह श्वास-प्रेक्षा करता है । श्वासोच्छ्वास को आते-जाते सिर्फ देखता है । श्वास की गति पर मन को केन्द्रित कर देता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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