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________________ परिमाननयोग साधना १६५ भूलों को पहचानने और उनकी आलोचना करके स्वच्छ होने के उपरान्त अन्तरशुद्धि में स्थिर रहना आवश्यक है, अन्यथा प्रतिक्रमण की प्रक्रिया गज-स्नान के समान ही रह जायगी, कि एक क्षण पहले स्नान किया और दूसरे ही क्षण शरीर पर धूल डाल ली। अतः अन्तरशुद्धि में स्थिर रहने के लिए साधक कायोत्सर्ग की साधना करता है। ___कायोत्सर्ग में साधक अपने तन-मन को स्थिर करता है, देह से ममत्व और देहाध्यास का त्याग करता है, देहातीत भावना में रमण करते हुए स्थिरवृत्ति का अभ्यास करता है और ध्यान की साधना करता है। अतः कायोत्सर्ग में स्थित साधक आसन, ध्यान आदि योगांगों की साधना करता हुआ स्थिरयोग में आता है। स्थिरवृत्ति की साधना के उपरान्त वह तपोयोग पर अपने चरण रखता है । अनशन (आहार त्याग), कषाय-नोकषाय, अठारह पापस्थानकों का त्याग करके तपोयोग की साधना करता है; क्योंकि इच्छाओं का निरोध करना ही तो तप है (इच्छानिरोधस्तपः) और वह प्रत्याख्यान द्वारा अपनी शारीरिक, भौतिक और सांसारिक इच्छाओं पर ही तो अंकुश लगाता है, उन्हें यथाशक्ति कम करता है। षडावश्यक की सम्पूर्ण साधना में वह संवरयोग में ही लीन रहता है; क्योंकि इस काल में वह मन-वचन-काया तथा कृत-कारित-अनुमोदन (त्रियोग-त्रिकरण)' से किंचित् भी आस्रवों का सेवन नहीं करता। षडावश्यक का यह क्रम साधना की दृष्टि से इतना वैज्ञानिक और श्रावक (गृहस्थयोगी) की सामायिक दो करण (कृत और कारित) तथा तीन योग (मन-वचन-काय) से होती है। गृहस्थ होने के कारण वह अनुमति का त्याग नहीं कर पाता । मान लीजिए, वह सामायिक में बैठा है, उस समय भी उसके पुत्र तथा सेवक आदि कारखाना अथवा व्यापार चला रहे हैं, घर में पत्नी पुत्र-वधुएँ आदि गृह कार्य कर रही हैं। ये व्यापार और घर सम्बन्धी कार्य सावध कार्य हैं और उनमें उसकी (गृहस्थ साधक की) संवासानुमति (auto matically understood accordance) होती ही है, इसीलिए वह अनुमतित्यागी नहीं हो पाता । इसके अतिरिक्त उसकी सामायिक का समय ४८ मिनट होता है, शक्ति और शारीरिक एवं परिस्थिति की अनुकूलता के अनुसार वह अधिक समय तक भी सामायिक कर सकता है। किन्तु साधु की सामायिक जीवन भर के लिए होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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