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________________ विशिष्ट योग भूमिका --- प्रतिमायोग-साधना १५१ दूसरी प्रतिमा में वह दो दत्ति अन्न की और दो दत्ति पानी की ग्रहण करता है तथा प्रथम प्रतिमा के सभी नियमों को यथारीति पालन करता है । इसका कालमान दो मास का है । तीसरी प्रतिमा का काल तीन मास का है । प्रथम प्रतिमा के सभी नियमों का पालन करते हुए वह तीन दत्ति अन्न की और तीन दत्ति पानी की लेता है । चौथो, पाँचवीं, छठी और सातवीं प्रतिमाओं का कालमान क्रमशः चार, पाँच, छह और सात मास है तथा दत्ति संख्या भी क्रमशः चार, पाँच, छह और सात है । ' इन सातों प्रतिमाओं में संसारत्यागी श्रमण योग की विभिन्न क्रियाप्रक्रियाओं की और विशेष रूप से समत्वयोग की साधना करता है । वह सभी प्रकार के मानसिक-शारीरिक तथा आधिदैविक, आधिभौतिक कष्टों को समभाव से सहता हुआ आत्म-साधना में लीन रहता है । आगे की प्रतिमाएँ : तप के साथ आसन जय आठवीं प्रतिमा में संसारत्यागी श्रमण साधक एक दिन का निर्जल उपवास (चतुर्थ भक्त) ग्रहण करके ग्राम अथवा नगर के बाहर उत्तानासन, पार्श्वसन अथवा निषद्यासन द्वारा कायोत्सर्ग में स्थिर रहता है । मल-मूत्र की बाधा यदि हो तो प्रतिलेखित भूमि पर मल-मूत्र त्याग कर पुनः अपने स्थान आकर कायोत्सर्ग में लीन हो जाता है । उस समय उस पर कैसा भी उपसर्ग आवे किन्तु वह अपने ध्यान से विचलित नहीं होता । इस प्रतिमा का काल एक सप्ताह का है । tat प्रतिमा भी सात दिन-रात अथवा एक सप्ताह की है । इस प्रतिमा के आराधन काल में साधक दण्डासन, लकुटासन या उत्कटुकासन से कायोत्सर्ग एवं ध्यान-साधना में लीन रहता है । दसवीं प्रतिमा भी सात दिन-रात की है । इसके आराधना काल में साधक गोदोहनिकासन, वीरासन और आम्रकुब्जासन से कायोत्सर्ग तथा आत्म- ध्यान करता है । ग्यारहवीं प्रतिमा एक अहोरात्र (२४ घण्टे - प्रथम दिन के सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक) की है । इस प्रतिमा के आराधना काल में आयारदसा, सातवीं दशा, सूत्र २६- ३१, पृष्ठ ७९-८० १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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