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________________ ११६ जैन योग : सिद्धान्त और साधना इसके पाँच अतिचार हैं-(१) स्तेनाहृत-चोरी का माल खरीदना या रखना, (२) तस्कर प्रयोग-चोरों को चोरी करने के लिए उकसाना, उन्हें चोरी के नये-नये तरीके बताना, (३) विरुद्ध राज्यातिक्रम-राज्य के नियमों का उल्लंघन करना, जैसे-कर-चोरी, चुंगी-चोरी आदि, (४) कूटतुला कूटमान तोल-माप के झठे पैमाने रखना, कम तोलना, कम नापना आदि, (५) तत्प्रतिरूपक व्यवहार-अच्छी वस्तु में बुरी वस्तु की अथवा अधिक कीमत वाली वस्तु में कम कीमत की वस्तु मिला देना। (४) स्वदारसन्तोषव्रत इस व्रत में श्रावक अपनी विवाहिता स्त्री के अतिरिक्त अन्य सभी स्त्रियों के साथ मैथुन (अब्रह्मचर्य) का त्याग कर देता है। इस व्रत के पाँच अतिचार हैं-(१) इत्वरिकापरिग्रहोतागमन-कामसेवन के अभिप्राय से किसी अन्य स्त्री (वेश्या, विधवा, Society girl, Callgirl, रखैल (Kept) आदि-जिनका कोई स्वामी अथवा पति न हो) को लोभ देना. (२) अपरिग्रहीतागमन-किसी अविवाहित अथवा कुमारी कन्या को कामबुद्धि से प्रलोभित करना आदि,' (३) अनंगक्रीड़ा-काम-सेवन के अंगों के अलावा अन्य अंगों से काम-तृप्ति करना, यथा-हस्तमैथुन, गुदामैथुन आदि; (४) परविवाहकरण-अपने पुत्र-पुत्रियों और आश्रितों का विवाह करना तो श्रावक का सामाजिक दायित्व माना जाता है, इसलिए करना ही पड़ता है किन्तु श्रावक को अन्य लोगों के विवाह के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए, यह अतिचार है, (५) काम-भोगतोवाभिलाषा-काम-भोग की अधिक लालसा रखना। (५) इच्छापरिमाण व्रत परिग्रह का सर्वथा त्याग गृहस्थ के लिए सम्भव नहीं है, क्योंकि उसे अपने तथा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए, बच्चों की शिक्षा के लिए तथा समाज में अपनी मान-मर्यादा बनाये रखने के लिए और अतिथियों के सत्कार तथा साधुओं को दान देने के लिए आवश्यक साधन, धन तथा सामग्री जुटानी पड़ती है। इसलिए वह अपनी मर्यादा तथा स्थिति के अनुसार १ इत्वरिकापरिग्रहीतागमन और अपरिगृहीतागमन-ये दोनों साधन जुटाने तक ही अतिचार रहते हैं, यदि व्यक्ति उनके साथ काम-सेवन कर लेता है, तब तो अनाचार हो जाता है और व्रत भंग हो जाता है । २ काम-भोग से अभिप्राय पाँचों इन्द्रियों के भोग से है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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