________________
योग को आधारभूमि : श्रद्धा और शील [१] ११५ विका का संपूर्ण रूप से अथवा आंशिक रूप से नाश कर देना, धन्धा, रोजगार बन्द करा देना, उचित पारिश्रमिक से कम देना-सभी छविच्छेद नाम के अतिचार हैं।
(४) अतिभारारोपण-बैल, घोडा, ऊँट आदि पशुओं तथा कुली आदि पर उनको शक्ति से अधिक भार लादना, उनकी शक्ति से अधिक काम लेना अतिभारारोपण है।
(५) भक्तपानविच्छेद-अपने अधीनस्थों को समय पर भोजन-पानी न देना, समय पर वेतन न देना आदि; जिससे अभावों के कारण उन्हें कष्ट हो।
__ (२) स्थूल मृषावादविरमण इसका दूसरा नाम सत्याणुव्रत है। सत्य बात को अपने स्वार्थ या द्वेषवश बदल देना, कुछ का कुछ कह देना, ऐसी बात कहना जिससे किसी का दिल दुखे, उसकी हानि हो-यह सब असत्य है। ऐसा असत्य सत्याणुव्रती श्रावक नहीं बोलता।।
इस व्रत में श्रावक पाँच महान असत्यों का त्याग कर देता है-(१) कन्यालीक-कन्या अर्थात् मनुष्यों के सम्बन्ध में झूठ बोलना, (२) गवालीकपशुओं के बारे में झठ बोलना, (३) भूम्यालीक-भूमि, खेत, मकान आदि के बारे में झूठ बोलना (४) न्यासापहार-किसी की रखी हुई धरोहर को झूठ बोलकर हड़प जाना, (५) कूट साक्षी-झूठी गवाही देना।
इस व्रत के पाँच अतिचार हैं-(१) सहसाभ्याख्यान-बिना अच्छी तरह जाने-समझे तथा सोचे-विचारे किसी पर झूठा दोष लगा देना, (२) रहस्याख्यान-किसी को गुप्त बात प्रगट कर देना, (३) स्वदारमंत्रभेद-अपनी स्त्री की गुप्त बात प्रकट कर देना, (४) मषोपदेश-किसी को अनाचार तथा झूठ बोलने की शिक्षा देना, गलत सलाह देना, (५) कूटसाकी-झठी गवाही देना।
(३) स्थूल अदत्तादानविरमण इसे अचौर्याणवत भी कहा जाता है। श्रावक इसमें स्थूल चोरी का त्याग करता है । स्थूल चोरी के अनेक भेद हैं, यथा-सेंध लगाना, गाँठ काटना, ठगी, राहजनी आदि । जिस क्रिया में अनुचित उपायों से दूसरे का
धन, जमीन आदि का अपहरण किया जाता है, वह सब स्थूल चोरी है । । तस्करी आदि चोरी के ही रूप हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org