SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ जैन योग : सिद्धान्त और साधना अन्य के मन में उठने वाले भावों का ज्ञान (४) ज्ञान विस्फार — अनित्य भावना (५) समाधि विस्फार — ध्यान से विघ्नों का नाश (६) आर्य ऋद्धि-- प्रतिकूल में अनुकूल संज्ञा ( ७ ) कर्म विपाकजा - आकाशगामिनी (८) पुण्यवती ऋद्धिचक्रवर्ती, वासुदेव आदि की ॠद्धि (९) विद्यामया ऋद्धि- विधाधरों का आकाश गमन का रूप दर्शन (१०) इज्झनठेन ऋद्धि-संप्रयोग विधि, शिल्प कार्य आदि में कुशलता । इनके अतिरिक्त अन्य अभिज्ञाओं का भी उल्लेख प्राप्त होता है । 'दिव्या सोत' से सभी प्रकार के शब्दों, पशु-पक्षियों की बोली आदि का परिज्ञान; 'परचित्त विज्ञानन' से दूसरे के मन का बोध; 'दिव्व चक्खु' से दिव्य दृष्टि की प्राप्ति; अधिक 'संयम' से लाघवता और आकाशगामिनी शक्ति की प्राप्ति; तथा 'पुब्वनिवासानुस्सती' से पूर्व जन्मों का ज्ञान प्राप्त हो हो जाता है ।" जैनयोग और लब्धियाँ । जैन योग में लब्धियों विस्तारपूर्वक वर्णन हुआ है योगशास्त्र और ज्ञानार्णव तक इन लब्धियों के वर्णन की चली आई है तथा अनेक प्रकार की लब्धियों का वर्णन ग्रन्थों में इनकी संख्या भी भिन्न-भिन्न है | अंग ग्रंथों से लेकर एक सुदीर्घ परंपरा हुआ है । विभिन्न भगवती सूत्र में अनेक स्थलों पर लब्धियों का वर्णन हुआ है । स्थानांग, 3 औपपातिक, प्रज्ञापना' में भी लब्धियों का वर्णन है । इनमें शारीरिक, मानसिक और आत्मिक सभी प्रकार की लब्धियाँ समाविष्ट हैं । लब्धियों की संख्या तिलोयपण्णत्ति में ६४, आवश्यक नियुक्ति में २८, षट्खण्डागम' में ४४, विद्यानुशासन में ४८, मन्त्रराजरहस्य में ५०, प्रवचन १ २ ३ ४ ५ प्रज्ञापना पद ६, सुत्र १४४ ६ द्रष्टव्य- विसुद्धिमग्गो का इद्विविध निद्देसो, पृष्ठ २६१ से २६५ भगवती ८ / २; ५/४/१८६; १४/७/५२१-५२२; ५/४/१६६; २/१०/१२०; ३/४/१६०, ३/५/१६१; १३ / ९ / ४९८ स्थानांग २ / २ ओपपातिक सूत्र २४ ८ ७ आवश्यक नियुक्ति ६९-७० षट्खण्डागम, खण्ड ४, १/६ श्रमण, वर्ष १९६५, अंक १-२, पृष्ठ ७३ & तिलोय पण्णत्ति, भाग १ / ४ / १०६७-९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy