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योगजन्य लब्धियाँ ६५ - से कह देता है, सत्य होता है । अस्तेय व्रत की प्रतिष्ठा से योगी के समक्ष निधान प्रगट हो जाते हैं अर्थात् भूमि के अन्दर तथा गुप्त स्थानों के निधान भी प्रगट हो जाते हैं । अपरिग्रह व्रत की साधना से योगी को पूर्वजन्मों का ज्ञान हो जाता है । '
इसी प्रकार अन्य अनेक लब्धियाँ नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार आदि योगांगों की साधना से प्राप्त हो जाती हैं । यहाँ तक कि सर्वज्ञता भी प्राप्त हो जाती है ।
योगदर्शन के विभूतिपाद में अनेक विभूतियों - लब्धियों का वर्णन हुआ है । उनमें कुछ ज्ञान विभूतियां है जिनका सम्बन्ध ज्ञान से है तथा कुछ शारीरिक विभूतियाँ शरीर सम्बन्धी हैं । उनमें से प्रमुख ये हैं- अतीतानागत ज्ञान, सर्वभूत-रुतज्ञान, परचित्त ज्ञान, पूर्वजाति ज्ञान, भुवन ज्ञान, तारा व्यूह ज्ञान, कायव्यूह ज्ञान, उपरान्त ज्ञान, और सिद्धदर्शन आदि ज्ञान - विभूतियाँ हैं तथा अन्तर्धान, परकाय प्रवेश, आकाशगमन, हस्तिबल, रूपलावण्य, कायसम्पत, क्षुत्पिपासानिवृत्ति और अणिमा, महिमा आदि का प्रादुर्भाव शारीरिक विभूतियाँ हैं ।
इन विभूतियों के पाँच प्रकार बताये हैं- (१) जन्म से होने वाली ( २ ) औषधि से होने वाली, (३) मंत्र से होने वाली ( ४ ) तप से होने वाली और (५) समाधि से प्राप्त होने वाली ।*
बौद्ध परम्परा में लब्धियों को 'अभिज्ञा' कहा (लब्धियों) के वहाँ दो भेद किये गये हैं- (१) लौकिक ओर वहाँ वर्णन है कि समाहित आत्मा से दस प्रकार के इद्धि- विध योग्य चित्त उत्पन्न होता है, उससे अर्हत्मार्ग की सिद्धि होती है । इसे प्रातिहार्य भी कहा गया है और अतिशय एवं उपाय - सम्पदा भी ।
बौद्धदर्शन में लब्धियाँ गया है । अभिज्ञा (२) लोकोत्तर |
ये दश भेद इस प्रकार हैं- (१) अधिष्ठान - अनेक रूप बनाने की क्षमता (२) विकुर्वण - विविध प्रकार की सेनाओं की निर्माण क्षमता (३) मनोमया --
१ पातंजल योगसूत्र २ / ३५-३६
२
पातंजल योगसूत्र २ / ४०-४६,४६,५३,५४, ३ / ५,१६,१७,१८ आदि
३
पातंजल योगसूत्र, विभूतिपाद
४
पातंजल योगसूत्र ४/१
५ विशुद्धिमग्गो, मग्ग १
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