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________________ योग के विविध रूप और साधना-पद्धति ४५ साधक की पूर्ण भक्ति होनी चाहिये । भक्ति के दो भेद हैं- (१) वैधी और (२) रागात्मिका । वैधी भक्ति वह होती है जिसकी विधिपूर्वक साधना की जाती है । -इसके नौ भेद हैं, जिसे नवधा भक्ति' कहा जाता है । रागात्मिका भक्ति रस का अनुभव कराने वाली तथा आनन्द और शान्ति देने वाली होती है । ऐसी भक्ति करने वाला साधक लोक लाज आदि से निरपेक्ष हो जाता । मीरा की भक्ति ऐसी थी । ( २ ) शुद्धि - मन्त्रयोग का दूसरा अंग शुद्धि है । शुद्धि दो प्रकार की होती है - ( १ ) बाह्य शुद्धि और ( २ ) आन्तरिक शुद्धि । बाह्य शुद्धि में साधक शरीर, स्थान और दिशा - इन तीन वस्तुओं की शुद्धि करता है । शरीर की शुद्धि स्नान से, भूमि की शुद्धि भूमि को झाड़पौंछकर साफ करने से और दिशा की शुद्धि दिन में पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके बैठने तथा रात्रि को उत्तर- मुख बैठकर पूजा-अर्चा करने से होती है । आन्तरिक शुद्धि का अभिप्राय मन की शुद्धि से है । मन में से क्रोध, मान, माया, लोभ आदि विकारों को निकालकर उसे शुद्ध किया जाता है तथा उसमें भगवद् भक्ति आदि शुभ भाव ग्रहण किये जाते हैं । (३) आसन - यह मन्त्रयोग का तीसरा अंग हैं । पद्मासन, सिद्धासन, पर्यंकासन किसी भी आसन से साधक बैठे; किन्तु आवश्यक यह है कि आसन स्थिर और ऐसा होना चाहिए जिससे अधिक देर तक निराकुलतापूर्वक बैठा जा सके । (४) पंचांग सेवन - मन्त्रयोग का यह चौथा अंग है । प्रत्येक मन्त्र के पाँच अंग होते हैं । (१) बीज - इसमें सम्पूर्ण मन्त्र का सार निहित होता है किन्तु यह सस्वर उच्चारणीय नहीं होता । (२) मन्त्र - मन्त्र के अक्षर - यह सस्वर उच्चारणीय होता है । (३) ऋद्धि - यह मन्त्र का हार्द होता है । ( ४ ) यन्त्र - अंक - अक्षर समन्वित ज्यामितीय रेखामय आलेखन । (५) कवच - इन चारों अंगों को समन्वित करते हुए स्तोत्र, स्तव आदि । इन पाँचों अंगों का मन्त्रयोगी साधक को विधिवत् सेवन करना चाहिए । (५) आधार - मन्त्रयोगी साधक को अपना सम्पूर्ण आचार और साथ ही विचार भी शुद्ध और सात्विक रखने चाहिए । १ नवधा भक्ति के नौ भेदों का वर्णन भक्तियोग में किया जा चुका है । Jain Education International For Private & Personal Use Only - सम्पादक www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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