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________________ संपादकीय भौतिक विद्या के क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने अणु का विखण्डन करके अद्भुत और असीम शक्ति का स्रोत प्राप्त कर लिया । अणु का विखण्डन करके ही परमाणु बम और उद्जन बम जैसे शक्तिशाली बमों का निर्माण हुआ और जेट एवं राकेट जैसे तीव्र गति वाले यान संभव हुए । ___ आत्म-विद्या के क्षेत्र में ज्ञानियों ने आत्मा का विखण्डन नहीं, किन्तु जागरण करके इससे भी अनन्त गुनी अद्भुत और आश्चर्यकारी शक्ति का स्रोत प्राप्त किया है । अणु पुद्गल है, जड़ है। आत्मा चेतन है । जड़ से चेतन में अनन्त गुनी शक्ति है । अणु की असीम शक्ति का पता लगाने वाले वैज्ञानिक मानव के मस्तिष्क की शक्ति का भी अभी तक पूर्ण रहस्य नहीं जान सके । इसका मतलब यही हुआ कि अणु से भी आत्मा में अनन्त शवित का रहस्य छिपा है । मनुष्य ज्यों-ज्यों साधना व प्रयत्न करके आत्म-शक्तियों की जानकारी प्राप्त कर रहा है त्यों-त्यों उसके सामने आश्चर्यों और अजीबो-गरीब किस्सों का संसार प्रकट होता जा रहा है । आत्मा की इस असीम गुप्त शक्ति को जानने/प्राप्त करने का मार्ग क्या है ? योग ! मन, वचन, कर्म का आत्मा के साथ मिल जाना और आत्मा के अनुकूल चलना योग है। मनुष्य की भौतिक ऊर्जा जब आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ मिल जाती है तो अनन्त शक्ति का रहस्य खुलने लगता है । यह मिलन ही योग है। विज्ञान प्रयोग में विश्वास करता है; अध्यात्म 'योग' में । विज्ञान शक्ति की खोज करता है, अध्यात्म शान्ति की। असीम शक्ति प्राप्त करके भी आज मनुष्य अशान्त है, दुखी है, और भयाक्रान्त है । इसलिए शक्ति की खोज छोड़कर वह शान्ति की खोज करना चाहता है। योग, शान्ति की खोज है । मन की दुर्भावनाएँ, भय, आशंका, लालसा, तनाव, चिन्ता इन सबसे मनुष्य आज पीड़ित है, दुखी है, और छटपटा रहा है कि इनसे छुटकारा मिले, शान्ति मिले । इसलिए वह शान्ति की खोज कर रहा है। . वास्तव में योगविद्या, जिसे जैन आगम अध्यात्मयोग (अज्झप्पयोग) कहते हैं और गीता इसे 'अध्यात्मविद्या' कहती है। अपने से अपने को जानने जगाने को विद्या है । यह संसार की प्राचीनतम विद्या है, और इसकी शोध एवं साधना का सम्पूर्ण श्रेय हमारी आर्यभूमि भारत को ही है। भारत में अगणित वर्षों पूर्व योगविद्या का विकास ही नहीं, किन्तु योग की सम्पूर्ण साधना का मार्ग भी प्रशस्त हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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