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योग का प्रारम्भ
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पतंजलि का महत्व एवं कार्य आज लिखित रूप में योग सम्बन्धी सबसे प्रसिद्ध, प्राचीन और व्यवस्थित ग्रन्थ पतंजलि का योगसूत्र अथवा योगशास्त्र है। पतंजलि ने अपना योगसूत्र ‘अथ योगानुशासनम्' सूत्र से प्रारम्भ किया है। यह उनके दर्शन का प्रथम सूत्र है । न तो स्वयं पतंजलि ही अपने को योगविद्या का प्रथम प्रणेता मानते हैं और न उनके योगसूत्र के भाष्यकार एवं टीकाकार ही ऐसा दावा करते हैं।
स्वयं पातंजल योगसूत्र के भाष्यकार रामानुज, वृत्तिकार महादेव, वृन्दावन शुक्ल, शिवशंकर, सदाशिव, मणिप्रभा के रचयिता रामानन्द, पातंजल रहस्यकार राघवानन्द, पातंजल रहस्य प्रकाश के रचयिता राधानन्द, योगसूत्र के वैदिक वृत्तिकार स्वामी हरिप्रसाद प्रभृति मनीषी विद्वानों ने एक स्वर से स्पष्ट स्वीकार किया है कि महर्षि पतंजलि योगदर्शन के आदिप्रणेता नहीं है। इन सबका स्पष्ट अभिमत है कि योगदर्शन का विकास हैरण्यगर्भशास्त्र (हिरण्यगर्भ अपर नाम ऋषभदेव द्वारा प्रणीत योगविद्या) से हुआ है।
महामहोपाध्याय डा० ब्रह्ममित्र अवस्थी' ने इस विषय पर अपना निष्कर्ष इन शब्दों में प्रगट किया है-"पतंजलि ने चित्तनिरोध-साधना के क्षेत्र में अपने समय में प्रचलित समस्त मान्यताओं अथा उपायों का संकलन मात्र कर दिया है, स्वीकृत सम्प्रदायों की सूचना मात्र दे दी है। प्राचीन काल (महाभारतकाल) में आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में जितने भी उपाय प्रचलित थे, उन्हें योग के नाम से अभिहित किया जाता था ।......"
डा० राजाराम शास्त्री, कुलपति काशो विद्यापीठ, वाराणसी, ने अपने विचार इस प्रकार प्रगट किये हैं-"......"यहाँ यह प्रश्न उठता है कि पतंजलि-वर्णित ये उपाय परस्पर भिन्न हैं या अभिन्न ? यदि भिन्न हैं तो पतंजलि का पक्ष क्या है ?........ (पतंजलि को) विविध योग पद्धतियों का दार्शनिक समीक्षक (योग-मार्ग का प्रवर्तक) नहीं माना है । अर्थात् पतंजलि से पूर्व योग साधना के क्षेत्र में अनेक पद्धतियाँ प्रचलित थीं। ईश्वरभक्तियोग (ईश्वर-प्रणिधान), हठयोग (प्राणायाम), तन्त्रयोग (विषयवती प्रवृत्ति), पंचशिख का सांख्ययोग (विशोका प्रवृत्ति), जैनों का वैराग्य (वीतराग विषयता), बौद्धों का ध्यानयोग (स्वप्न आदि का आलम्बन) तथा भक्तियोग के
१ महामहोपाध्याय डा० ब्रह्ममित्र अवस्थी : पातंजल योगशास्त्र : एक अध्ययन,
पृ० २६३, प्रकाशक-इन्दु प्रकाशन, दिल्ली ७. २ वही, प्रस्तावना, पृष्ठ ६.
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