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________________ प्रकाशकीय स्व० आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी महाराज का जन्म शताब्दी वर्ष इस साल सम्पूर्ण भारत में मनाया जा रहा है। आचार्यश्री जैनजगत् के महान चमकते प्रभापुञ्ज सूर्य थे. जिनके दिव्य ज्ञान-दर्शन-चारित्र के आलोक से भारत के कोने-कोने में आलोक फैला, जागृति आई। आचार्यश्री जी ने जैन धर्म एवं साहित्य की महान सेवाएँ की, जिनका सम्पूर्ण जैन समाज को आज भी गौरव है। आचार्यश्री की कुछ महान कृतियाँ तो मान भी बेजोड़ हैं । गतवर्ष हमने 'जैन तत्त्व कलिका' नाम से आचार्यश्री की एक महान कृति प्रकाशित की थी । भारत के सुदूर क्षेत्रों में सर्वत्र उसका स्वागत हुआ। विद्वानों और जिज्ञासु पाठकों के लिए वह अतीव उपयोगी सिद्ध हुई। उस एक ही पुस्तक में संपूर्ण जैन धर्म, दर्शन का सार समाया हुआ है। • अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं-आचार्यश्री की एक अन्य कृति, इस पुस्तक का मूल नाम है-“जैनागमों में अष्टांग योग" । यद्यपि यह कृति सूत्र रूप में लिखी गई है, संक्षिप्त में जैन आगमों के आधार पर योगमार्ग का विवेचन करते हुए पातंजल योगसूत्र के साथ इसकी तुलना की गई है। संक्षिप्त होने से पाठकों को समझने में कुछ कठिन तो जरूर है, किन्तु सार रूप में योगमार्ग का पूरा वर्णन इसमें समाया हुआ है । इस पुस्तक पर आचार्यश्री की स्वयं को प्रस्तावना-उपोद्घात है, जो बड़ी ही खोजपूर्ण और गम्भीर है। इस प्रस्तावना में संपूर्ण पुस्तक की आत्मा छिपी है । यह प्रस्तावना इसी पुस्तक में छप रही है। आज के युग में जहाँ अन्य क्षेत्रों में वैज्ञानिक शोधे हो रही हैं, योग के क्षेत्र में भी नये-नये अनुसन्धान और प्रयोग हो रहे हैं और योगविद्या का आज बहुत ही विस्तार हो रहा है । इसलिए यह आवश्यक था कि आचार्यश्री की उक्त कृति को आज की खोजों के साथ संतुलित करते हुए विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया जाय जिससे सर्वसाधारण योग के विषय को समझ सके और उस पर आचरण कर सके । नवयुग सुधारक भंडारी श्री पदमचन्द्र जी महाराज आज आत्म-परिवार के मुख सन्त हैं । आप आचार्य देव के प्रपौत्र शिष्य हैं। आगमों के गंभीर ज्ञाता, आचार्यश्री के शिष्य रत्न पं० श्री हेमचन्द्र जी महाराज के आप सुशिष्य हैं। आप बड़ी ही श्रद्धा और विवेक के साथ स्व० आचार्यश्री जी एवं पंडितरत्न श्री हेमचन्द्र महाराज की सेवा की । गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया। इस वर्ष पं० श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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