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खजुराहो का जैन पुरातत्व पद्म ( या सर्प ) और वज्र हैं।' दिगम्बर ग्रन्थों में इन्द्र के साथ केवल गज वाहन और करों में वज्र और हेति का उल्लेख हुआ है ।२
- अग्नि-उदरबंध, ज्वालामय प्रभामण्डल, श्मश्रु, मूछों तथा जटामुकुट से शोभित अग्नि घटोदर हैं और उनका वाहन मेष है। अग्नि के हाथों में वरद ( या अभय )-अक्षमाला, सक, पुस्तक और जलपात्र हैं। दिगम्बर ग्रन्थों में अग्नि को मेष वाहन के साथ जलपात्र और अक्षमाला लिए निरूपित किया गया है ।
यम-छोटे श्मश्रु तथा मूंछों से युक्त भयंकर दर्शन वाले यम के दो दाँत बाहर की ओर निकले दिखाए गए हैं। पार्श्वनाथ मन्दिर के मण्डप की मूर्ति में यम का मस्तक कपाल और सर्प से अलंकृत है । इस उदाहरण में महिष वाहन वाले यम के तीन हाथों में खट्वांग, पद्म और पुस्तक हैं तथा चौथा हाथ कटि पर स्थित है जिस पर कुक्कुट की आकृति बनी है । पार्श्वनाथ मंदिर की गर्भगृह-भित्ति की मूर्ति में वाहन महिष की अपेक्षा मेष जैसा दिखता है । यम की निचली दाहिनी भुजा कटि पर है तथा शेष में पुस्तक, सर्प और खट्वांग हैं । आदिनाथ मन्दिर की मूर्ति में भी वाहन मेष जैसा ही है और दो अवशिष्ट वाम करों में घण्टा और पद्म दिखाये गये हैं। दिगम्बर ग्रन्थों में महिषारूढ़ यम के हाथों में दण्ड के प्रदर्शन का निर्देश है। उल्लेखनीय है कि खजुराहो में यम के निरूपण में पर्याप्त स्वरूपगत भेद प्राप्त होता है। यह तथ्य ब्राह्मण मन्दिरों की यम मूर्तियों के अध्ययन से भी स्पष्ट है जिनमें खट्वांग, कपाल और पुस्तक के साथ सर्प, कुक्कुट, डमरू, घण्टा, पद्म आदि भी प्रदर्शित हैं।
निऋति-लम्बीमाला तथा जटाजूट से शोभित निऋति निर्वस्त्र हैं। उनके गर्दन और हाथ सालंकृत हैं। वाहन के रूप में श्वान् तथा हाथों में खड्ग, चक्राकार पद्म, सर्प और शिरस् प्रदर्शित हैं । आदिनाथ मंदिर की मूर्ति में ऊपर के दाहिने हाथ में सर्प के स्थान पर पद्म है । दिगम्बर ग्रन्थों में निऋति का वाहन रीछ ( ? ) बताया गया है और हाथों में मुद्गर और वज्र के प्रदर्शन का निर्देश है।
वरुण-किरीटमुकुट से अलंकृत वरुण के समीप ही मकर वाहन की आकृति भी उकेरी है । उनके तीन हाथों में पुस्तक ( या पाश ), चक्राकार पद्म और जलपात्र ( या १. पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की मूर्ति में निचला दाहिना हाथ कटि पर स्थित है और
आदिनाथ मन्दिर की मूर्ति में केवल एक ही हाथ शेष है, जिससे वरदमुद्रा व्यक्त है। २. प्रतिष्ठासारसंग्रह ६. ६५; प्रतिष्ठासारोद्धार ३. १८७ । ३. आदिनाथ मन्दिर की मूर्ति में केवल दो दाहिने हाथ ही शेष हैं, जिनमें सक और
वरदमुद्रा प्रदर्शित हैं। ४. प्रतिष्ठासारोद्धार ३. १८८ । ५. प्रतिष्ठासारोद्धार ३. १८९ । ६. प्रतिष्ठासारोद्धार ३. १९०; शाह, यू० पी०, पूर्व निदिष्ट, पृ० ९३ ।
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