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अन्य देव मूर्तियां
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और नीचे के हाथों में वरदमुद्रा और शंख (या जलपात्र) हैं। तीनों ही उदाहरणों में दोनों पाश्वों में सेविकाओं, उपासकों तथा तीर्थंकरों की लघु आकृतियाँ उकेरी हैं । दक्षिणी भित्ति की एक मूर्ति में लक्ष्मी के कंधों के ऊपर सरस्वती और चक्रेश्वरी की भी आकृतियां बनी हैं जिनके समीप दी तीर्थंकरों की दो निर्वस्त्र कायोत्सर्ग मूर्तियाँ आकारित हैं। उत्तरंगों पर लक्ष्मी तथा गजलक्ष्मी दोनों ही की आकृतियां बनी हैं। एक उदारहण के अतिरिक्त अन्य में देवी ललितमुद्रा में आसीन है और उनके करों में वरद-या-अभयमुद्रा, सनालपद्म, सनालपद्म एवं जलपात्र प्रदर्शित हैं। पार्श्वनाथ मंदिर के गर्भगृह के प्रवेशद्वार तथा मंदिर ११४ के उदाहरणों में शीर्षभाग में दो गज आकृतियों को देवी का अभिषेक करते हुए दिखाया गया है। क्षेत्रपाल
तान्त्रिक प्रभाव के फलस्वरूप जैन धर्म और कला में जिन देवी-देवताओं को प्रवेश मिला उनमें ६४ योगिनियाँ और क्षेत्रपाल मुख्य हैं। जैन साहित्य में यद्यपि ६४ योगिनियों (आचारदिनकर) और क्षेत्रपाल दोनों के उल्लेख हैं, किन्तु मूर्त अंकनों में केवल क्षेत्रपाल को ही अभिव्यक्ति मिली । जैन देवकुल में क्षेत्रपाल को ल० १०वी-११वीं शती ई० में सम्मिलित किया गया। खजुराहो तथा देवगढ़ जैसे दिगम्बर स्थलों पर क्षेत्रपालों का निरूपण विशेष लोकप्रिय था। गुजरात में तारंगा (मेहसाणा) स्थित अजितनाथ मंदिर (श्वेताम्बर) की पश्चिमी भित्ति पर भी क्षेत्रपाल की एक मूर्ति है। खजुराहो की क्षेत्रपाल मूर्तियाँ प्रतिमाविज्ञान की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इस स्थल पर न केवल इनकी विविधतापूर्ण स्वतंत्र मूर्तियाँ ही बनीं, बल्कि एक लेखयुक्त उदाहरण में क्षेत्रपाल का नाम भी उत्कीर्ण है। शांतिनाथ मंदिर (१/१) के प्रवेशद्वार के समीप की मूर्ति (के० १/३) में क्षेत्रपाल का नाम "चन्दकाम' अभिलिखित है।
क्षेत्रपाल के प्रतिमानिरूपण से संबन्धित प्रारम्भिक उल्लेख निर्वाणकलिका में है । इस ग्रन्थ में अपने-अपने क्षेत्र के नाम वाले बर्बरकेश, विरूप और बड़े-बड़े दाँतों वाले तथा विकराल दर्शन वाले क्षेत्रपाल को निर्वस्त्र और छः हाथों वाला तथा पादुका पर आसीन बताया गया है । क्षेत्रपाल के दक्षिण करों में मुद्गर, पाश और डमरू तथा वाम में शृंखलाबद्ध श्वान, अंकुश तथा गेडिका (दण्ड) प्रदर्शित हैं ।' आचरदिनकर में बर्बरकेश और लम्बी जटाओं वाले तथा वासुकी नाग के यज्ञोपवीत एवं सिंहचर्म से युक्त क्षेत्रपाल को विंशतिभुज बताया गया है । श्वान वाहन वाले त्रिनेत्र क्षेत्रपाल प्रेतासन तथा अनेक प्रकार के शस्त्र से सज्जित होंगे। उन्हें आनन्द भैरव आदि ८ भैरवों तथा ६४ योगिनियों से वेष्टित दिखाया जाना चाहिए, यह भी उल्लेख है। १. क्षेत्रपालं क्षेत्रानुरूपनामानं श्यामवर्ण बर्बरकेशमावृत्तपिङ्गनयनं विकृतदंष्ट्रम् पादुकाधिरूढ
नग्नं कामचारिणं षट्भुजं मुद्गरपाशडमरूकान्वितदक्षिणपाणि श्वानाङ्कुशगेडिकायुत्तवाम
पाणि । निर्वाणकलिका २१, पृ० ३८ । २. आचारदिनकर भाग २, प्रतिष्ठाधिकार, पृ० १८० ।
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