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________________ ७४ खजुराहो का जैन पुरातत्त्व एवं गंधों की मूर्तियाँ बनी हैं। सरस्वती के साथ हंस वाहन केवल एक उदाहरण में ही आकारित है।' __ पार्श्वनाथ मंदिर के उत्तरी अधिष्टान (७९४ ६३.५ से० मी०) की चतुर्भुज मूर्ति में सरस्वती के ऊर्व करों में चक्राकार पद्म हैं और नीचे के दोनों हाथ खंडित हैं। आसन के समीप ही हंस आकारित है। देवी के शीर्ष भाग में तीन लघु जिन आकृतियाँ तथा दोनों पावों में स्तुतिमुद्रा में तीन उपासकों की आकृतियाँ बनी हैं। पार्श्वनाथ मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश-द्वार की दो मूर्तियों में सरस्वती के ऊपरी हाथों में चक्राकार पद्म और पुस्तक (या अक्षमाला) हैं तथा निचले हाथों से देवी वीणा वादन कर रही हैं। इस मंदिर की पश्चिमी देवकुलिका के उत्तरंग की मूर्ति भी इन्हीं विशेषताओं वाली है। पार्श्वनाथ मंदिर के गर्भगृह की दूसरी मूर्ति में निचले हाथों में वीणा के स्थान पर वरदमुद्रा और कमण्डलु हैं । अन्य सभी उदाहरणों में सरस्वती के ऊपरी हाथों में पद्म और पुस्तक तथा नीचले में वीणा (या वरदमुद्रा और कमण्डलु) प्रदर्शित हैं। केवल एक उदाहरण में (पार्श्वनाथ मंदिर की लक्ष्मी मूर्ति) सरस्वती के निचले हाथों में अभयमुद्रा और मातुलिंग हैं । लक्ष्मी या श्रीदेवी समृद्धि की देवी लक्ष्मी या श्रीदेवी का जैन ग्रंथों में अनेकशः उल्लेख हुआ है । श्वेताम्बर ग्रन्थों में गजारूढ़ महालक्ष्मी के दोनों हाथों में पद्म का उल्लेख है । पर दिगम्बर परम्परा में चतुर्भुजा श्रीदेवी का एक हाथ पुष्प तथा दूसरा पद्म से युक्त बताया गया है। लक्ष्मी के साथ वाहन के रूप में गज का उल्लेख जैन परम्परा की विशिष्टता है । लक्ष्मी का एक प्रचलित रूप अभिषेक या गजलक्ष्मी है जिसकी चर्चा कल्पसूत्र में महावीर के जन्म के पूर्व उनकी माता त्रिशला द्वारा देखे गये १४ मांगलिक स्वप्नों की सूची में मिलती है । शीर्ष भाग में दो गजों से अभिषिक्त लक्ष्मी को पद्मासीन और दोनों करों में पद्म धारण किए हुए निरूपित किया गया है। भगवतीसूत्र में भी एक स्थल पर लक्ष्मी मूर्ति का उल्लेख है। जैन परम्परा की लक्ष्मी (या श्रीलक्ष्मी) तथा गजलक्ष्मी पूरी तरह ब्राह्मण परम्परा से प्रभावित हैं। जन कला में लक्ष्मी तथा गजलक्ष्मी दोनों की मूर्तियों के पर्याप्त उदाहरण मिलते हैं । नवीं शती ई० के बाद लक्ष्मी का शिल्पांकन प्रारम्भ हुआ जिसके प्रमुख उदाहरण खजुराहो, देवगढ़, ओसियाँ, कुंभारिया, दिलवाड़ा जैसे स्थलों पर हैं । खजुराहो में लक्ष्मी की कुल आठ मूर्तियाँ हैं। इनमें से तीन मूर्तियाँ पार्श्वनाथ मंदिर के मण्डप की उत्तर और दक्षिण की भित्तियों पर तथा शेष मंदिरों के उत्तरंगों पर हैं । पार्श्वनाथ मंदिर की तीन खड़ी मूर्तियों में चतुर्भुजा लक्ष्मी के ऊपरी हाथों में पद्म प्रदर्शित हैं १. पार्श्वनाथ मंदिर के उत्तरी अधिष्ठान की मूर्ति ।। २. भट्टाचार्य, बी० सी० , दि जैन आइकनोग्राफी, दिल्ली, १९७४, (पु० मु०) पृ० १३६ । ३. कल्पसूत्र ३७ । ४. भगवतीसूत्र, ११. ११. ४३० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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