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________________ खजुराहो का जैन पुरातत्त्व खजुराहो के आदिनाथ मंदिर के मंडोवर की १६ रथिकाओं ( ७९४ ६४ से० मी० ) में ऐसी देवियाँ आकारित हैं जिनकी पहचान संख्या और लक्षणों के आधार पर महाविद्याओं से की जा सकती है।' दिगम्बर स्थल पर महाविद्याओं के अंकन का यह एकमात्र ज्ञात उदाहरण है। रथिकाबिंबों की १६ देवियों को विशेष सम्मानजनक स्थिति में आकारित किया गया है । इन देवियों के साथ चतुर्भुजी देवियों की लघु आकृतियों, चामरधारिणी सेविकाओं, उपासिकाओं और तीर्थंकर मूर्तियों का भी अंकन हुआ है । यहाँ दिगम्बर ग्रंथ प्रतिष्ठासारसंग्रह ( १२वीं शती ई० ), प्रतिष्ठासारोद्धार (१३वीं शती ई०) और प्रतिष्ठातिलकम् (१५४३ ई०) के आधार पर इन देवियों को पहचानने का यत्न किया गया है । ये देवियाँ चार, छः या आठ हाथों वाली तथा अलंकृत मुकुट, हार, स्तनहार, भुजबंध, वलय, नूपुर, कर्णपुर एवं धोती आदि से सुशोभित हैं । दो उदाहरणों के अतिरिक्त जिनमें देवियाँ त्रिभंग में हैं, अन्य में उन्हें पद्म पर ललितमुद्रा में आसीन दिखाया गया है। इन देवियों के शीर्ष-भाग में एक जिन आकृति और दोनों पावों में अभयमुद्रा, पद्म, पद्म एवं जलपात्र से युक्त चतुर्भुज देवियाँ आकारित हैं । मंडोवर पर उत्तर और दक्षिण की ओर सात-सात और प.श्चम की ओर दो मूर्तियाँ हैं । यहाँ इनका विवरण दक्षिणी भित्ति की मूर्तियों से ( क्रमशः ऊपर से नीचे ) प्रारम्भ किया गया है। पहली मूर्ति में चतुर्भजा देवी त्रिभंग में हैं और उनके अवशिष्ट वाम करों में चक्र तथा जलपात्र हैं । वाहन की आकृति अस्पष्ट होने के कारण देवी की पहचान संभव नहीं है । दूसरी मूर्ति में पद्मासीन अष्टभुजी देवी अश्व वाहन के साथ निरूपित हैं। देवी के अवशिष्ट हाथों में अभयमुद्रा, एक लम्बी वस्तु, शर, धनुष, दण्ड और जलपात्र स्पष्ट हैं । अश्ववाहन के आधार पर देवी की पहचान प्रज्ञप्ति' या अच्युता3 ( या अच्छुमा ) से संभव है। ग्रंथों में अश्ववाहना चतुर्भुजा अच्छुप्ता के करों में धनुष ( या शर ), खेटक, खड्ग और बाण के प्रदर्शन का विधान है। तीसरी मूर्ति में ललितमुद्रा में विराजमान षड्जा देवी के सिर के ऊपर सात सर्पफणों का छत्र प्रदर्शित है । देवी के दो अवशिष्ट दक्षिण करों में पद्म और पाश हैं तथा वाहन के रूप में कूर्म आकारित है। वाहन के आधार पर देवी की पहचान गांधारी से संभव है ।" सर्प से सम्बद्ध होने के आधार पर इसे वैरोटी से भी पहचाना जा सकता है । ६ चौथी ललितासीन मूर्ति में अष्टभुजा देवी का वाहन सिंह है और उनके सुरक्षित हाथों में अभयमुद्रा, गदा, त्रिशूल, नकुलक, परशु और शक्ति हैं । उपलब्ध ग्रन्थों के आधार पर इस देवी की पहचान संभव नहीं १. सम्प्रति दो रथिकाओं की प्रतिमायें पूर्णतया नष्ट हो गई हैं । २. प्रतिष्ठासारोद्धार ३. ३८ । ३. प्रतिष्ठासारोद्धार ३. ५० । ४. निर्वाणकलिका, पृ० ३७ । ५. प्रतिष्ठासारोद्धार ३. ४६ । ६. प्रतिष्ठासारोद्धार ३. ४९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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