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यक्ष-यक्षी मूर्तियाँ
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(ऋषभनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, और महावीर) की यक्षियों की स्वतंत्र मूर्तियाँ मिलती हैं । ये यक्षियाँ क्रमशः चक्रेश्वरी, अंबिका, पद्मावती और सिद्धायिका हैं । पुरातात्त्विक संग्रहालय, खजुराहो में मनोवेगा यक्षी की भी एक मूर्ति है।
__खजुराहो में अजितनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर की मूर्तियों में कभी-कभी यक्ष और यक्षी आकृातयों के स्थान पर पीठिका छोरों पर लघु जिन आकृतियाँ बनी हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि खजुराहो का कलाकार केवल ऋषभनाथ के गोमुख-चक्रेश्वरी, नेमिनाथ के कुबेरअंबिका और पार्श्वनाथ के धरणेन्द्र-पद्मावती के ही पारंपरिक स्वरूपों से परिचित था। महावीर की मूर्तियों में यद्यपि मांतग और सिद्धायिका स्वतंत्र लक्षणों वाले हैं किन्तु उनका स्वरूप न तो परंपरासम्मत है और न ही किसी स्थानीय परंपरा के आधार पर निर्धारित । सिद्धायिका के रूप में वैष्णवी के लक्षणों वाली देवी निरूपित हैं। अब हम खजुराहो की स्वतंत्र मूर्तियों के आधार पर सर्वानुभूति यक्ष तथा चक्र श्वरी, मनोवेगा, अंबिका, पद्मावती
और सिद्धायिका यक्षियों की मूर्तियों का अध्ययन करेंगे । सर्वाल या सर्वानुभूति ( या कुबेर ) यक्ष
___ सर्वानुभूति या कुबेर २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ के यक्ष हैं ।' यहाँ उल्लेखनीय है कि मूर्तियों में परंपरा के अनुरूप नेमिनाथ के साथ नर पर आरूढ़ त्रिमुख गोमेध यक्ष के स्थान पर सर्वदा धन के थैले से युक्त गजारूढ़ सर्वानुभूति यक्ष को ही आमूर्तित किया गया है। सर्वानुभूति के हाथ में धन के थैले ( नकुलक ) का प्रदर्शन सभी क्षेत्रों में लोकप्रिय था, पर गजवाहन एवं करों में पाश एवं अंकुश केवल श्वेताम्बर स्थलों पर ही दृष्टिगत होते हैं । ल० छठी शती ई० में सर्वानुभूति की मूर्तियाँ बननी प्रारंभ हुई।
खजुराहो में सर्वानुभूति की स्वतन्त्र एवं जिन-संयुक्त दोनों ही प्रकार की मूर्तियाँ हैं । सर्वानुभूति निःसन्देह खजुराहो में सर्वाधिक लोकप्रिय यक्ष था। यही कारण है कि पार्श्वनाथ के धरणेन्द्र यक्ष के अतिरिक्त अन्य सभी तीर्थंकरों के साथ या तो द्विभुज सर्वानुभूति की आकृति बनी है या फिर उन पर सर्वानुभूति के लक्षणों का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है । ऋषभनाथ तथा महावीर की मूर्तियों में भी यक्ष निधि के थैले से युक्त हैं जो सर्वानुभूति का ही प्रभाव दर्शाते हैं। जाडिन संग्रहालय, खजुराहो की शान्तिनाथ एवं पुरातत्त्व संग्रहालय, खजुराहो की संभवनाथ ( क्रमांक १७१५) मूर्तियों में भी यक्ष के रूप में फल और निधिथैले से युक्त सर्वानुभूति ही आकारित हैं ।
१. नेमिनाथ के यक्ष को त्रिमुख एवं षड्भुज तथा गोमेध संज्ञा और नर या पुष्प वाहन
वाला बताया गया है । गोमेध के हाथों में मुद्गर, परशु, दण्ड, फल, धन, वज्र एवं वरदमुद्रा का उल्लेख मिलता है । जैन ग्रन्थों में कुबेर १९वें तीर्थंकर मल्लिनाथ के यक्ष के रूप में निरूपित हैं।
प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१५०; प्रतिष्ठातिलकम् ७.२२ २. तिवारी, मारुति नन्दनप्रसाद, जैन प्रतिमाविज्ञान, वाराणसी, १९८१, पृ० २१८-२२.
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