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खजुराहो का जैन पुरातत्त्व मुख्य जिनों सहित परिकर की ४८ छोटी जिन आकृतियों को मिलाकर इस चौमुखी में कुल ५२ जिन आकृतियाँ हैं। चौमुखी की ५२ जिन मूर्तियाँ नन्दीश्वर पट्ट पर ५२ जिनालयों या जिन आकृतियों के अंकन की परम्परा से प्रभावित प्रतीत होती हैं ।' चौमुखी मूर्ति का ऊपरी भाग मन्दिर के शिखर के रूप में निर्मित है । जीवन-दृश्य
१०वी-१२वीं शती ई० के मध्य श्वेताम्बर स्थलों पर विभिन्न जिनों के पंच-कल्याणकों एवं जीवन की कुछ अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का अंकन विशेष लोकप्रिय था। ओसियां, कुंभारिया और दिलवाड़ा के जैन मन्दिरों में ऋषभनाथ, शांतिनाथ, मुनिसुव्रत, नेमिनाथ, पाश्वनाथ और महावीर के जीवन से सम्बन्धित पर्याप्त दृश्यांकन है, किन्तु दिगम्बर स्थलों पर पता नहीं किन कारणों से जिनों के जीवन की घटनाओं के अंकन के उदाहरण नहीं मिलते। मथुरा, देवगढ़ और खजुराहो जैसे समृद्ध जैन पुरास्थलों पर भी केवल जिनों के जन्म या दीक्षा अभिषेक से सम्बन्धित एकाव दृश्य ही उत्कीर्ण हैं । खजुराहो का अकेला उदाहरण मन्दिर-४ के उत्तरंग पर है, जिसमें किसी जिन के दीक्षा-कल्याणक का प्रसंग दर्शाया गया है। फलक के दाहिने छोर पर ध्यानमुद्रा में एक जिन आकृति बनी है जिसके समीप ही दो पुरुष आकृतियां खड़ी हैं जिनमें से एक के हाथ की सामग्री वस्त्र जैसी है। समीप ही सात अन्य आकृतियाँ घट और माला के साथ खड़ी है; एक आकृति शंख भी बजा रही है ।
१. शाह, यू० पी०, स्टडीज इन जैन आर्ट, पृ० १२० ।
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