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प्रस्तावना
स्थापत्य'
खजुराहो के मंदिर नागर शैली के उदाहरण हैं। इनकी नियोजित स्थापत्य योजना तथा उनमें पूरी तरह समाहित सुन्दर मूर्तियां नागर शैली के मंदिरों के विकास के श्रेष्ठतम स्तर को दर्शाती हैं। ये मंदिर शैव, वैष्णव, शाक्त, सौर और जैन सम्प्रदायों के हैं। यहाँ किसी बौद्ध मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं। विभिन्न सम्प्रदायों से सम्बद्ध होने के बाद भी इन मंदिरों की वास्तु एवं शिल्प योजना मूलतः एकरूप है। चौंसठ योगिनी, ब्रह्मा, ललगुआँ, महादेव, वराह एवं मातंगेश्वर मंदिरों के अतिरिक्त अन्य सभी मंदिरों के वास्तु शैली की एकरूपता पूरी तरह स्पष्ट है ।२ बिना चहारदीवारी वाले खजुराहो के मंदिर एक ऊँची जगती पर स्थित हैं । तलच्छंद में ये मंदिर लैटिन क्रास के आकार के हैं, जिनमें लम्बी भुजा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रदर्शित है। ये मंदिर गर्भगृह, अन्तराल, मण्डप और अर्द्धमण्डप से युक्त है। पार्श्वनाथ, लक्ष्मण तथा कन्दरिया महादेव जैसे अधिक विकसित मंदिरों में प्रदक्षिणापथ से युक्त मण्डप भी देखा जा सकता है। ऊध्र्वच्छंद में खजुराहो के मंदिर जगती और उसपर लम्बाकार ऊपर की ओर उठने वाले अधिष्ठान, जंघा ( या मंडोवर), वरण्ड एवं शिखर से युक्त हैं । मंदिरों के अधिष्ठानों पर विभिन्न अभिप्रायों एवं देव मूर्तियों का अंकन हुआ है । जंघा पर सामान्यतः मूर्तियों की दो या तीन समानान्तर पंक्तियाँ आकारित है, जिनमें प्रथम दो पंक्तियों में स्वतन्त्र देव तथा देव-युगल मूर्तियाँ हैं जबकि अन्तिम पंक्ति में गन्धर्वो, विद्याधरों एवं किन्नरों आदि की मूर्तियाँ हैं। निचली दो पंक्तियों में बीच-बीच में विभिन्न मनमोहक मुद्राओं में अप्सराओं या सुर-सुन्दरियों की भी आकर्षक मूर्तियाँ बनी हैं । इन्हीं में बीच-बीच में व्याल की भी विविध रूपों वाली मूर्तियाँ हैं। इनमें गज-व्याल, नर-व्याल, शुक-व्याल, सिंहव्याल मुख्य हैं। उल्लेखनीय है कि खजुराहो मंदिरों पर व्याल आकृतियों का अंकन विशेष लोकप्रिय था। जंघा में कक्षासन या गवाक्ष का मनोहर अंकन कला सौन्दर्य के साथ ही मंदिर के भीतरी भाग में मन्द प्रकाश के संचार के व्यावहारिक उपयोग की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । मंदिरों के छत भाग के ऊपर अर्द्धमण्डप, मण्डप और गर्भगृह के लिए अलग-अलग और क्रमशः उन्नत होती हुई कोणयुक्त स्तूपाकार पिरामिड के आकार वाली छतें हैं । शिखर के शीर्ष पर दो आमलक, एक कलश और सबसे ऊपर बीजपूरक है। प्रधान वक्र रेखाओं के लयबद्ध संयोजन से शिखर का आकार अत्यन्त सुन्दर दिखाई देता है। बड़े शिखर की मूल मंजरी के चारों ओर उरःशृंग हैं। खजुराहो-मंदिरों के वितान अत्यन्त कुशल और परिपक्व संयोजन व्यक्त करते हैं। खजुराहो के कुछ मंदिर पंचायतन ( लक्ष्मण, विश्वनाथ ) शैली के भी है जिनमें मध्यवर्ती प्रधान मंदिर के अतिरिक्त जगती के चारों कोनों पर एक-एक मंदिर बने हैं ।
वर्तमान में खजुराहो में केवल २५ मन्दिर विभिन्न अवस्थाओं में सुरक्षित हैं। इन्हें साधारणतः तीन समूहों, पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी में विभाजित किया गया है । पश्चिमी १. विस्तार के लिए द्रष्टव्य, कृष्णदेव, 'दि टेम्पुल्स ऑव खजुराहो इन सेन्ट्रल इंडिया',
पृ० ४३-६५; कृष्णदेव, टेम्पुल्स आव नार्थ इंडिया, दिल्ली, १९६९, पृ० ५५-६४ । २. कृष्णदेव, टेम्पुल्स आव नाथं इंडिया, पृ० ५६ । .
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