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प्रस्तुत पुस्तक इस दिशा की ओर बढ़ाया गया एक छोटा-सा कदम है । यह हमारा एक विनम्र प्रयास मात्र है। प्रतिमा-विज्ञान के आधार पर खजुराहो-स्थित जैन-मन्दिरों, शासकीय व अशासकीय संग्रहालयों तथा खजुराहो के अतिरिक्त अन्यत्र खजुराहो के जन पुरातत्त्व की जो सामग्री उपलब्ध है, उसका पुरातात्त्विक विश्लेषण करते समय विद्वान लेखक ने अथक परिश्रम करते हुए जिस वैज्ञानिक दृष्टिकोण व निष्पक्ष भाव का परिचय दिया है, वह श्लाघनीय है। इस कृति में उन्होंने विगत अनेक वर्षों से उनके द्वारा इस विषय पर किये व कराये जा रहे शोघ-कार्य का सार-संक्षेप तो प्रस्तुत किया ही है, साथ ही अन्य विद्वानों द्वारा सम्बन्धित प्रश्नों पर जो सामग्री एकत्रित की गई है व जो विचार-मंथन किया गया है, उसका भी सम्यक्रूपेण उल्लेख करने का यथोचित प्रयास किया है। पूर्ववर्ती विद्वानों द्वारा जो निष्कर्ष निकाले गये, उनका परीक्षण तो उन्होंने किया ही है, साथ ही अनेक स्थलों पर नई जमीन भी उन्होंने नए सिरे से तोड़ी है। उन्होंने सदैव संयम से काम लिया है और बिना पर्याप्त साक्ष्य के जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर पहँचने की भूल नहीं की है। खजुराहो के जैन मन्दिर जिस सांस्कृतिक समन्वय तथा सामन्जस्य के प्रतीक हैं, लेखक ने भी उसी समन्वयात्मक दृष्टि को अपनाते हुये अपना लेखन कार्य किया है । खजुराहो के कलाकार ने यदि छैनी-हथौड़ी से कठोर पाषाण पर भारत की इन्द्रधनुषी संस्कृति को साकारता एवं सजीवता प्रदान की है, तो प्रस्तुत पुस्तक के लेखक ने भी उस कलाकार के हृदय में अपना हृदय उड़ेलकर उससे तादात्म्य स्थापित कर उसके मन्तव्यों तथा भावनाओं को बड़ी ही ईमानदारी से अपने शब्दों द्वारा छायाचित्रित करने का प्रयास किया है। उनकी भाषा परिष्कृत व प्राञ्जल होने के साथ-साथ सहज, सरल व सुबोध है, जिसके कारण साधारण पाठक भी कठिन विषय को भलीभाँति समझ लेता है। डॉ० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी ने हमारे आग्रह को सहज ढंग से स्वीकार कर इस ग्रन्थ का सृजन करने की जो कृपा की है, उसके लिये क्षेत्रीय-प्रबन्धसमिति उनके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करती है।
___ इस ग्रन्थ में जो भी निष्कर्ष या अभिमत प्रस्तुत किये गये हैं, वे विद्वान लेखक के अध्ययन-मनन-चिन्तन का परिणाम हैं और उनका उत्तरदायित्व भी उन पर ही है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रकाशक का मत लेखक के मत से मिलता ही हो ।
पुस्तक के प्रकाशन में क्षेत्रीय प्रबन्ध समिति के उपाध्यक्ष श्री सुरेन्द्र कुमार जैन एवं मंत्री श्री कमल कुमार जैन ने बहुत परिश्रम किया है, जिसके लिये वे धन्यवाद के पात्र हैं।
__अन्त में, हम पुस्तक के शुद्ध व आकर्षक मुद्रण के लिये तारा प्रिटिंग वर्क्स, वाराणसी के संचालक श्री रमाशंकर पण्ड्या के प्रति भी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करना अपना परम कर्तव्य समझते हैं। १ जनवरी १९८७
दशरथ जैन
अध्यक्ष श्री साहू शान्तिप्रसाद जैन कला-संग्रहालय. समिति तथा श्री दि० जैन अतिशय क्षेत्र
खजुराहो प्रबन्ध समिति
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