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साहू शान्ति प्रसाद जैन कला संग्रहालय, खजुराहो
महावीर (क्र० २३१, ११वीं शती ई०) : महावीर को ध्यानमुद्रा में सिंहासन पर बैठे दिखाया गया है । सिंहासन के मध्य में ही सिंह-लांछन भी उत्कीर्ण है । यक्ष-यक्षी के रूप में द्विभुज मातंग और चतुर्भुजा यक्षो का अंकन हुआ है ।
गोमुख यक्ष : चतुर्भुज गोमुख यक्ष त्रिभंग में हैं और उनका वाहन वृषभ है । यक्ष के दो हाथों में पुस्तक और कलश प्रदर्शित हैं । गोमुख यक्ष के आगे दिक्पाल-वरुण, वायु, कुबेर, ईशान्, इन्द्र और अग्नि की आकृतियाँ बनी हैं। इनके वाहन के रूप में क्रमशः मकर, घट, वृषभ, गज और अज को आकृतियाँ बनी हैं।
जैन युगल (क्र० ४९, ११वों शतो ई०) : इस मूति (२'६' x २'५'') में पुरुष और स्त्री को साथ-साथ ललितमुद्रा में विराजमान दिखाया गया है। पुरुष के एक हाथ में पद्म और स्त्रो के हाथ में बालक है। इन आकृतियों के ऊपर तीर्थङ्कर की मूर्ति और उनके ऊपर जैन आचार्यों की तत्त्वचर्चा एवं मुनियों द्वारा उसके श्रवण के दृश्य दिखाये गये हैं। सबसे ऊपर दो गजों के युद्ध और उसके बाद अश्व, गज तथा पदाति सैनिकों का अंकन हुआ है।
द्वितीर्थो तीर्थकर मूति (क्र० ३१, ११वीं शती ई०) : दो तीर्थंकरों को बिना लांछनों के साथ-साथ कायोत्सर्ग मुद्रा में सिंहासन एवं अन्य प्रातिहार्यों के साथ दिखाया गया है। दोनों तीर्थंकरों के साथ सामान्य लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी आमूर्तित हैं। इस मूर्ति में मालाधारी गन्धर्वो का अलंकरण विशेष महत्वपूर्ण है। इस मूर्ति के ऊपर किसी प्राचीन मन्दिर का उत्तरंग भाग रखा है, जिसमें मध्य में ऋषभनाथ और दोनों ओर जैन मुनियों द्वारा तीर्थंकर मूर्तियों के पूजन का दृश्य अंकित है ।
तीर्थकर मूति : आगे दो-दो के समूह में कुल आठ लांछन रहित कायोत्सर्ग तीर्थंकर मूर्तियाँ सुरक्षित हैं । ये मूर्तियां लगभग ११ वीं शती ई० की हैं।
ऋषभनाथ (क्र. ४८, ११वीं शती ई०) : ऋषभनाथ की ध्यानस्थ मूर्ति (२७''x ५'७") में गोमुख और चक्रेश्वरी एवं परिकर में चार तीर्थंकर मूर्तियाँ भी बनी हैं। इस मूर्ति के दूसरी ओर बिना लांछन वाली तीर्थङ्कर की एक ध्यानस्थ मूर्ति ( क्र० ५१, ११ वीं शती ई० ) रखी है। इस मूर्ति के परिकर में २४-२४ तीर्थङ्करों के दो समूह दिखाये गये है (४२' x १'५')।
चौमुखी मूर्ति (क्र० १९७, ११वीं शती ई०) : इस चौमुखी मूर्ति में एक ओर ध्यानस्थ सुपार्श्वनाथ, दूसरी ओर लक्ष्मो (ललितासोन और हाथों में अभयमुद्रा, पद्म, पद्म एवं जलपात्र से युक्त), तीसरी ओर तत्त्वचर्चा करते हुए दो जैन मुनि (पुस्तक लिए) और चौथी ओर ध्यानस्थ पार्श्वनाथ की आकृतियाँ बनी हैं ।
ऋषभनाथ (क्र० ५४, १२वीं शती ई०) : अलंकृत आसन पर विराजमान ऋषभनाथ की पीठिका पर वृषभ-लांछन तथा गोमुख और चक्रेश्वरी की आकृतियाँ बनी है (३' x १'१०')। समीप ही ऋषभनाथ की ११वीं शती ई० की एक दूसरी लेखयुक्त मूर्ति (क्र० १०६; २८"x २२") भी रखी है जिसमें वृषभ-लांछन और गीमुख तथा चक्रेश्वरी के साथ ही सिंहासन के दोनों सिंह भी द्रष्टव्य है।
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