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अध्याय-१
विषय प्रवेश
जैन धर्म की अत्यधिक प्राचीनता, इसकी दीर्घायु और अद्यावधि लोकप्रियता, इसके अनेक सिद्धान्तों यथा व्यावहारिक दष्टिकोण से अहिंसा और सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से स्याद्वाद की समसामयिकता इस धर्म को सहज ही अत्यन्त रोचक बनाते हैं। प्रायः आधुनिक विचारक जैनधर्म के महत्त्व को सहज ही स्वीकार करते हैं। प्राचीन भारतीय संस्कृति के विद्वानों में इसके प्रति आकर्षण-इसकी प्राचीनता, तयुगीन इसके महत्त्व, इसके प्रचुर साहित्य तथा पुरातात्त्विक अवशेषो के कारण ही रहा । परन्तु सम्भवतः ब्राह्मणीय और बौद्ध धर्म के अध्ययन पर जितना ध्यान दिया गया, उतना जैनधर्म के अध्ययन पर नहीं । ब्राह्मणीय धर्म के प्रति आकर्षण तो स्वाभाविक ही था क्योंकि सम्पूर्ण भारतीय धार्मिक इतिहास की यही प्रधान धारा थी और प्रत्येक दृष्टि से सर्वाधिक समृद्ध भी थी। बौद्ध धर्म के प्रति अपेक्षाकृत अधिक आकर्षण के भी अनेक कारणों की कल्पना की जा सकती है। वह प्राचीन भारतीय इतिहास की निविवाद रूप से एक महत्वपूर्ण धारा रही, परन्तु इसके साथ-साथ भारत के बाहर उसके व्यापक प्रचार-प्रसार ने भी उसके ऐतिहासिक आकर्षण में वद्धि कर दी। संभवतः उसके किचित् अधिक बुद्धिवादी दष्टिकोण ने भी उसके प्रति आधुनिक विद्वानों को अधिक आकृष्ट किया होगा और विशेषकर १९वीं शताब्दी के यूरोपीय विचारकों को जो स्वयं एक प्रकार की बुद्धिवादी मानवतावाद के पोषक थे, यह अधिक रुचिकर प्रतीत हुआ हो । यही कारण है कि प्राचीन पालि साहित्य का व्यापक रूप से सम्पादन और अनुवाद हुआ और उसके सूक्ष्म अध्ययन के अनेक प्रयत्न हुए। जैन धर्म के प्रति अपेक्षाकृत कम आकर्षण का संभवतः एक आकस्मिक कारण यह भी था कि प्राकृत भाषा अपेक्षाकृत अधिक दुरूह थी। हो सकता है कि जैनधर्म की अतिशय विभाजन-प्रियता ने भी उसके
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