SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २५ ) पार्श्वनाथ चैत्यपरिपाटी कल्याणसागर शास्वततीर्थमाला वाचनाचार्य मेरुकीर्ति जैसलमेरचैत्यपरिपाटी जिनसूखसूरि शत्रुजयचैत्यपरिपाटी शत्रुञ्जयतीर्थयात्रारास विनीत कुशल आदिनाथ रास कविलावण्यसमय पार्श्वनाथसंख्यास्तवन रत्नकुशल कावीतीर्थवर्णन कविदीप विजय वि.सं १८८६ तीर्थराजचैत्यपरिपाटीस्तवन साधुचन्द्रसूरि पूर्वदेश चैत्यपरिपाटी जिनवर्धनसूरि मंडपांचलचत्यपरिपाटी खेमराज यह सूची 'प्राचीनतीर्थमालासंग्रह' सम्पादक-विजयधर्मसूरिजी के आधार पर दी गई है। दिगम्बर परम्परा का तीर्थविषयक साहित्य दिगम्बर परम्परा में प्राचीनतम ग्रन्थ कसायपाहुड, षट्खण्डागम, भगवतीआराधना एवं मूलाचार हैं। किन्तु इनमें तीर्थ शब्द का तात्पर्य धर्मतीर्थ या चतुर्विधसंघ रूपी तीर्थ से ही है। दिगम्बर परम्परा में तीर्थक्षेत्रों का वर्णन करने वाले ग्रन्थों में तिलोयपण्णत्ती को प्राचीनतम माना जा सकता है। तिलोयपण्णत्ती में मुख्य रूप से तीर्थङ्करों की कल्याणक-भूमियों के उल्लेख मिलते हैं। किन्तु इसके अतिरिक्त उसमें क्षेत्रमंगल की चर्चा करते हुए पावा, उर्जयंत और चम्पा के नामों का उल्लेख किया गया है। इसी प्रकार तिलोयपण्णत्ती में राजगह का पंचशैलनगर के रूप में उल्लेख हआ है और उसमें पांचों शैलों का यथार्थ और विस्तृत विवेचन भी है। समन्तभद्र ने स्वयम्भस्तोत्र में उर्जयंत का विशेष विवरण प्रस्तुत किया है। दिगम्बर परम्परा में इसके पश्चात् तीर्थों का विवेचन करने वाले ग्रन्थों के रूप में दशभक्तिपाठ प्रसिद्ध हैं। इनमें संस्कृतनिर्वाणभक्ति और प्राकृतनिर्वाणकाण्ड महत्त्वपूर्ण हैं। सामान्यतया संस्कृतनिर्वाणभक्तिके कर्ता ''पूज्यपाद" और प्राकृतभक्तियों के कर्ता "कुंदकुंद' को माना १. तिलोपण्णत्ति १।२१.२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy