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जैन तोपों का ऐतिहासिक अध्ययन
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की चर्चा है । जिनप्रभसूरि ने भी इसी तथ्य का उल्लेख किया है । इसप्रकार स्पष्ट है कि विक्रमीय १५ वीं शती तक यह नगरी एक जैनी तीर्थ के रूप में विद्यमान रही । "
आज यहाँ कोई भी (प्राचीन और मध्यकालीन ) जैन पुरावशे विद्यमान नहीं है । यहाँ स्थित जिनालय भी अर्वाचीन है । ऐसा प्रतीत होता है कि जब इस नगरी का महत्त्व कम होने लगा, तो यहाँ के जैन श्रावक दूसरे स्थानों पर चले गये और यह नगरी प्रायः उज सी गयी ।
सूर्पारक की पहचान वर्तमान महाराष्ट्र प्रान्त की राजधानी बम्बईड़ से ३७ मील दूर उत्तर में ठाणा जिलान्तर्गत वर्तमान सोपारा से क जाती है ।
आ-आन्ध्रप्रदेश
(१) आमरकोण्डपद्मावतीदेवीकल्प (२) कुल्लपाकमाणिक्यदेवकल्प ( ३ ) श्रीपर्वत
१. आमरकोण्डपद्मावतीदेवीकल्प
पूर्व मध्ययुगीन दक्षिण भारतीय राजनीति में काकतीयों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । प्रारम्भ में ये पूर्वी चालुक्यों का सामन्त थे; परन्तु जब उनकी शक्ति क्षीण होने लगी, तब इन्होंने अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिया । जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के "आमरकोण्डपद्मा-ष वतीदेवीकल्प" के अन्तर्गत इस राजवंश की उत्पत्ति, वंश-परम्परा आदि का सुन्दर विवरण प्रस्तुत किया है, जो संक्षेप में इस प्रकार है“तैलंग देश में आमरकोण्ड नामक एक नगरी है । यहाँ मेघचन्द्र नामक एक दिगम्बर जैनाचार्य रहते थे । देवी पद्मावती उन्हें प्रत्यक्ष थीं, जिनकी कृपा से आचार्य के एक शिष्य " माधव" को राज्य लक्ष्मी प्राप्त हुई, तत्पश्चात् माधवराज ने आमरकोण्ड में देवी का मंदिर बनवाया और १२ ग्राम भेंट में दिये । माधवराज के वंश में पुरंटिरि
१. जैनयुग - जिल्द २, पृ० १५२-१५८ । २. त्रिपुटी महाराज, पूर्वोक्त, पृ० ३३७ । ३. जैन, जगदीशचन्द्र पूर्वोक्त, पृ० ६५ ।
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