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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ
समीकरण को स्वीकार किया है।' आज यहाँ अजितनाथ, कुन्थुनाथ और पार्श्वनाथ के जिनालय विद्यमान हैं, परन्तु वे वर्तमान युग के हैं।'
२२. स्तम्भनककल्प
कल्पप्रदीप के अन्तर्गत स्तम्भनक तीर्थ पर ३ कल्प लिखे गये हैं
१-श्री पार्श्वनाथकल्प
२-श्रीस्तम्भनककल्प और ३-स्तम्भन-पार्श्वनाथकल्पशिलोञ्छ
इनमें से प्रथम में तो पार्श्वनाथ की महिमा का वर्णन है । दूसरे में यहाँ भूमि से अभयदेवसूरि द्वारा प्रतिमा प्रकट करने का उल्लेख है
और तीसरे कल्प में सविस्तार नागार्जुन की कथा और अभयदेवसूरि द्वारा प्रतिमा प्रकट करने की चर्चा है। अतः यहाँ केवल तीसरे कल्प-स्तम्भन-पाश्र्वनाथकल्पशिलोञ्छ का ही विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है । इस विवरण की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं_ "ढंक पर्वत पर वासुकी और भोपलदेवी का पुत्र नागार्जुन रहता था। वह वानस्पतिक औषधियों का विशिष्ट ज्ञाता था। प्रसिद्ध जैनाचार्य पादलिप्तसूरि से उसने गगनगामिनी विद्या सीखी। एक बार वह सेढी नदी के तट पर पार्श्वनाथ की प्रतिमा के समक्ष रससिद्धि का प्रयास कर रहा था, जिसमें उसे असफलता मिली और वहीं उसकी हत्या कर दी गयी। पार्श्वनाथ की प्रतिमा भूमि में चली गयी और वहीं पर रसस्तम्भित हुआ, जिससे उस स्थान का नाम ही स्तम्भनक पड़ गया। बहुत काल व्यतीत होने पर अभयदेवसूरि वहाँ आये और उन्होंने जयतिहअणस्तोत्र का पाठ किया, जिससे पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रकट हुई; जिसे उन्होंने वहीं पर चैत्य निर्मित कराकर स्थापित कर दिया।"
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१. परीख और शास्त्री-गुजरातनो राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहास
भाग १, पृ० ३५४-५५ । २. शाह, अम्बालाल पी०-जैनतीर्थसर्वसंग्रह-तीर्थसूची-क्रमांक १६६६
१६६८।
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