SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २० ) तीर्थविषयक श्वेताम्बर जैन साहित्य तीर्थविषयक साहित्य में कुछ कल्याणक भूमियों के उल्लेख समवायांग, ज्ञाता और पयूषणाकल्प में हैं। कल्याणक भूमियों के अतिरिक्त अन्य तीर्थक्षेत्रों के जो उल्लेख उपलब्ध होते हैं उनमें श्वेताम्बर परम्परा में सबसे पहले महानिशीथ और निशीथची में हमें मथुरा, उत्तरापथ और चम्पा के उल्लेख मिलते हैं । निशीथचूणि, व्यवहारभाष्य, व्यवहारचूणि आदिमें भी नामोल्लेख के अतिरिक्त इन तीर्थों के सन्दर्भ में विशेष कोई जानकारी नहीं मिलती; मात्र यह बताया गया है कि मथुरा स्तूपों के लिए, उत्तरापथ धर्मचक्र के लिये और चम्पा जीवन्तस्वामी की प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध थे। तीर्थ सम्बन्धी विशिष्ट साहित्य में तित्थोगालिय प्रकीर्णक, सारावली प्रकीर्णक के नाम महत्त्वपूर्ण माने जा सकते हैं किन्तु तित्थोगालिय प्रकीर्णक में तीर्थस्थलों का विवरण न होकर के साधु, साध्वी, श्रावक एवं श्राविका रूप चतुर्विध तीर्थ की विभिन्न कालों में विभिन्न तीर्थंकरों द्वारा जो स्थापना की गई, उसके उल्लेख मिलते हैं, उसमें जनसंघरूपी तीर्थ के भूत और भविष्य के सम्बन्ध में कुछ सूचनाएँ प्रस्तुत की गई हैं । उसमें महावीर के निर्वाण के बाद आगमों का विच्छेद किस प्रकार से होगा ? कौन-कौन प्रमुख आचार्य और राजा आदि होंगे, इसके उल्लेख हैं । इस प्रकीर्णक में श्वेताम्बर परम्परा को अमान्य ऐसे आगम आदि के उच्छेद के उल्लेख भी हैं । यह प्रकीर्णक मुख्यतः महाराष्ट्री प्राकृत में उपलब्ध होता है, किन्तु इस पर शौरसेनी का प्रभाव भी परिलक्षित होता है । इसका रचनाकाल निश्चित करना तो कठिन है, फिर भी यह लगभग दसवीं शताब्दी के पूर्व का होना चाहिए, ऐसा अनुमान किया जाता है। तीर्थ सम्बन्धी विस्तृत विवरण की दृष्टि से आगमिक और प्राकृत भाषा के ग्रन्थों में 'सारावली' को मुख्य माना जा सकता है । इसमें मुख्यरूप से शत्रुजय अपरनाम पुण्डरीक तीर्थ की उत्पत्ति-कथा दी गई है। इस प्रकीर्णक में शत्रुजय तीर्थ का निर्माण कैसे हुआ और उसका पुण्डरीक नाम कैसे पड़ा? ये दो बातें मुख्य रूप से विवेचित हैं और इस सम्बन्ध में कथा भी दी गई है। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ लगभग ११६ गाथाओं में पूर्ण हुआ है। यद्यपि यह ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy