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________________ २५० पश्चिम भारत के जैन तीर्थ खो चुकी थी। प्रभावकचरित' से ज्ञात होता है कि हेमचन्द्र के साथ कुमारपाल यहाँ आये थे और उन्होंने आदिनाथ तथा पार्श्वनाथ की प्रतिमाओं को नवनिर्मित प्रासाद में स्थापित कराया। वस्तुपाल ने भी यहाँ स्थित आदिनाथ जिनालय का जीर्णोद्धार कराया एवं सुधाकुंड तथा प्रपा का निर्माण कराया ।' वलभी को गुजरात राज्य के भावनगर जिलान्तर्गत वर्तमान 'वला' नामक स्थान से समीकृत किया जाता है । यहाँ ग्राम में वि०सं० १९६० में निर्मित पार्श्वनाथ का एक जिनालय विद्यमान है । ३ १८. वायड कल्पप्रदीप के "चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प' के अन्तर्गत वायड का भी उल्लेख है और यहाँ महावीर स्वामी के मंदिर होने की बात कही गयी है। वायड का जैन तीर्थ के रूप में सर्वप्रथम उल्लेख सम्भवतः सकलतीर्थस्तोत्र (रचनाकार-सिद्धसेनसूरि, वि० सं० ११२३) में प्राप्त होता है । जैन प्रबन्धग्रन्थों में भी इस स्थान की चर्चा है। प्रभावक चरित" १. "हेमसूरिचरितम्'-प्रभावकचरित, संपा० जिनविजय, पृ० २११ २. ढाकी, एम० ए० तथा शास्त्री, हरिशंकर प्रभाशंकर--"बस्तुपाल-तेज पालनी कीर्तिनात्मक प्रवृत्तियो” स्वाध्याय, वर्ष ४, अंक ३, पृ० _३०५-३२० । ३. शाह, अम्बालाल पी०-पूर्वोक्त, पृ० ११४-११५ । ४. थाराउद्दय-वायड-जालीट्टर-नगर-खेड-मोढेरे।। अणहिल्लवाडनयरे व(च)ड्डावल्लीय बंभाणे ॥ २७ ।। दलाल, सी०डी०-पत्तनस्थप्राच्यजनभाण्डागारीयग्रन्थसूची, पृ० १५६ जगत्प्राण: पुरादेवो जगत्प्राणप्रदायकः । स्वयं सदाऽनवस्थानः स्थानमिच्छन् जगत्यसौ ॥ ५ ॥ वायटाख्यं महास्थानं गूर्जरावनिमण्डनम् । ददौ श्रीभूमिदेवेभ्यो ब्रह्मभ्य इव मूर्तिभिः ।। ६ ॥ 'जीवदेवसूरिचरितम्'' प्रभावकचरित, पृ० ४७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org :
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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