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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन २४७ १७. वलभी कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत वलभी का भी जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख है और यहाँ भगवान् चन्द्रप्रभ के जिनालय होने की बात कही गयी है। ___वलभी पश्चिमी भारत की राजधानी और मैत्रकवंशीय राजाओं की राजधानी थी। उनके शासनकाल वि० सं० ५२७/ई० सन् ४७० से वि० सं० ८४०/ई० सन् ७८३ तक यह नगरी विद्या, धर्म और राजनीति तीनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण रही। वलभी का सर्वप्रथम उल्लेख पाणिनी ने किया है।' कथासरित्सागर-( सोमदेवभट्ट-ई० सन् १०वीं शती) तथा दशकुमारचरित (दण्डी-ई० सन् ७वीं शती ) में भी इस नगरी का उल्लेख प्राप्त होता है। मैत्रकवंशीय राजाओं के समय इस नगरी का सर्वाङ्गीण विकास हुआ। इनके समय में यह नगरी बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित रही। चीनी यात्रियों ने इस स्थान का उल्लेख किया है। ह्वेनसांग के अनुसार यह हीनयान सम्प्रदाय का केन्द्र था।" इत्सिन (ई० सन् ६७१-६९५) ने इसे एक विद्याकेन्द्र के रूप में उल्लिखित करते हुए नालन्दा के समान ही महत्त्व दिया है। १. अष्टाध्यायी गणपाठ ४।२।८२ ।। २. अहं हि सार्थवाहस्य वलभीवासिनः सुतः । महाधनाभिधानस्य महेश्वरवराजितः ।। कथासरित्सागर २।४।११६ । ३. 'अस्ति सौराष्ट्र पु वलभी नाम नगरी । तस्यां गृहगुप्तनाम्नो गुह्यकेन्द्रतुल्य विभवस्य नाविकपतेर्दुहितां रत्नवती नाम । दशकुमारचरित संपा० नारायण बालकृष्ण गोडबोले, ( बम्बई-शक सं० १८४४ ) षष्ठ उच्छ्वास, पृ० २२५ । ४. परीख और शास्त्री-पूर्वोक्त, पृ० ३५१ ५. वाटर्स, थामस-आन ह्वेनसांग ट्रेवेल्स इन इंडिया, भाग २, पृ० १०९ ६. परीख और शास्त्री-पूर्वोक्त, पृ० ३५२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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