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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन २३९ पाटलानगर का भी उल्लेख है और यहाँ नेमिनाथ के मन्दिर होने की बात कही गयी है। पाटलानगर को प्रसिद्ध जैन तीर्थ शंखेश्वर से साढ़े चार मोल दूर स्थित 'पाटलाग्राम' नामक स्थान से समीकृत किया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मध्ययुग के प्रारम्भ में किसी समय यहाँ नेमिनाथ का मंदिर निर्मित कराया गया, उसी समय से यह स्थान तीर्थरूप में प्रसिद्ध हुआ। प्रभावकचरित के अन्तर्गत 'बप्पभट्टिसूरिचरित' में इस स्थान का उल्लेख है।' वि०सं० १३७१ में शत्रुञ्जय की यात्रा से लौटते हुए समराशाह यहाँ आये थे। जिनकुशलसूरि ने भी संघ के साथ यहाँ की यात्रा की थी।३ वि० सं० १३७८ में जिनप्रभसरि द्वारा रचित तीर्थयात्रास्तोत्र में भी इस तीर्थ की चर्चा है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि तेरहवीं-चौदहवीं शती में यह स्थान जैन तीर्थ के रूप में भलीभाँति प्रतिष्ठित रहा। बाद के समय में इस तीर्थ के बारे में कोई विवरण प्राप्त नहीं होता। संभवतः व्यापारिक कारणों से यहाँ के जैन श्रावक अन्य स्थानों पर चले गये और यह स्थान अपने पूर्व वैभव से च्युत हो गया। यहाँ के जिनालयों की प्रतिमायें भी अन्य १. अस्ति स्वस्तिनिधिः श्रीमान् देशो गूर्जरसंज्ञया । अनुत्सेकविवेकाढ्यलोकः शोकाचलस्वरुः ।। ४ ॥ यदेकांश प्रतिच्छन्दस्वरभ्रमुकुरस्थितम् । गौरीशमुनिबाहुल्यात् तत्पुरं पाटलाभिधम् प्रभावकचरित संपा० मुनि जिनविजय, पृ० ८० २. त्रयोदशशतैरेकसप्तत्याऽभ्यधिकैर्गतैः । फाल्गुनेमासि पञ्चम्यां शुक्लायामभवत् पदम् । ५।२३७ ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... देसलो गुरुभिः सार्धमगमत् पाटलापुरे। नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध ५/२४२ ३. ततः पाटलाग्रामे श्रीनेमिनाथतीर्थ चिरकालीनं नमस्कृत्य ............. । खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली-संपा० मुनि जिनविजय, पृ० ६३ ४. पाडलनयरे नेमि नमिमो तारणगिरिमि अजियजिणं । विधिमार्गप्रपा-संपा० मुनि जिनविजय, परिशिष्ट के अर्न्तगत प्रकाशित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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