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________________ २३८ पश्चिम भारत के जैन तीर्थ समर्पित है। यह संभवतः वही जिनालय है जिसका जिनप्रभसूरि ने उल्लेख किया है। इस जिनालय का निचला हिस्सा १०वीं शती के अन्तिम चरण में निर्मित हुआ है। तेजपाल ने इस जिनालय के मूल वेदीबन्द भाग को यथावत् रखते हुए गूढ़मण्डप आदि का जीर्णोद्धार कराया, जैसा कि प्रो० ढाकी का कहना है।' परन्तु कान्तीलाल एफ० सोमपुरा ने उक्त मत से अपनी असहमति व्यक्त की है और कहा कि 'इस जिनालय में वि०सं० १२३४ ई० सन् ११७८ का एक शिलालेख विद्यमान है, जो इस जिनालय के जीर्णोद्धार का उल्लेख करता है। चकि यह तिथि तेजपाल के बहत पहले की है, अतः तेजपाल को इसके पुनर्निर्माण का श्रेय देना उचित नहीं है । ई० सन् की १७ वीं-१८ वीं शती में इस जिनालय का पुनः जीर्णोद्धार कराया गया। इस जिनालय की दो धातु प्रतिमायें अभिलेख युक्त हैं। ये लेख वि०सं० १४२९ तथा वि०सं० १५२७ के हैं। इसके अलावा यहाँ ५ अन्य जिनालय भी विद्यमान हैं, जिनमें महावीर स्वामी का जिनालय सर्वोत्कृष्ट है। इस जिनालय में ५२ देवकुलिये बनी हैं, जिनमें नागर वणिकों द्वारा स्थापित महावीर स्वामी की प्रतिमायें विद्यमान हैं।' यह स्थान गुजरात प्रान्त के मेहसाणा जिले में अवस्थित है । ६ १३. पाटलानगर कल्पप्रदीप के 'चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प' के अन्तर्गत १. ढाकी, मधुसूदन तथा शास्त्री, हरिशंकर-“वस्तुपाल तेजपालनी कीर्तिनात्मक प्रवृत्तियो” स्वाध्याय, जिल्द ४, अंक ३, पृ० ३१७ । २. सोमपुरा, के० एफ०--- द स्ट्रक्चरल टेम्पुल्स ऑफ गुजरात, पृ० १५०, १५१ पादटिप्पणी १४५।१ । ३. ढाकी और शास्त्री-उपरोक्त, पृ० ३१७ । ४. सूरि, विजयधर्म-संपा. प्राचीनलेखसंग्रह-भाग १, लेखाङ्क ८० तथा ४०६ । ५. शाह, अम्बालाल पी० -जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग १, पृ० ६४ । ६. परीख और शास्त्री--पूर्वोक्त, पृ० ३७१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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