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________________ २२८ पश्चिम भारत के जैन तीर्थ उक्त चैत्य को श्रेष्ठी रामदेव द्वारा पुनर्निर्मित कराने एवं मलधारगच्छीय देवाणंदसूरि द्वारा वि० सं० १२६६/ई० सन् १२०९ में मूर्ति स्थापित करने का जो उल्लेख किया है, वह अविश्वसनीय नहीं लगता। ८. खेटक जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के "चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प' के अन्तर्गत खेटक का भी उल्लेख किया है और यहाँ महावीर स्वामी के मन्दिर होने की बात कही है । __ वलभी के मैत्रकवंशीय शासकों के समय खेटक एक 'आहार' (जिला ), "आहारविषय' और 'नगर' के रूप में प्रतिष्ठित रहा। यहाँ से इस वंश के शासकों यथा धरसेन 'द्वितीय', रसेन 'चतुर्थ', शीलादित्य 'तृतीय', शीलादित्य 'सप्तम' आदि के ताम्रपत्र प्राप्त हुए हैं। परमार नरेश सोयक 'द्वितीय ( ई० सन् ९४५-९७२ ) के ई० सन् ९४९ के एक दानशासन में इस नगरी को 'खेटकमण्डल' नाम से उल्लिखित किया गया है। पद्मपुराण (२-१३३-१९) में एक दिव्य नगरी के रूप में इसका उल्लेख है । २ दण्डीकृत दशकुमारचरित में वलभी, मधुमती और खेटक का साथ-साथ उल्लेख हआ है।३ सिद्धसेनसूरि द्वारा रचित सकलतीर्थस्तोत्र ( ई० सन् १०६७ ) में जैन तीर्थ के रूप में इस स्थान का उल्लेख किया गया है। जैन प्रबन्ध ग्रन्थों में भी इस नगरी का उल्लेख प्राप्त होता है । प्रबन्धचितामणि के 'मल्लवादिप्रबन्ध' में देवादित्य नामक एक ब्राह्यण की बाल-विधवा १. परीख और शास्त्री-गुजरातनो राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहास भाग १, पृ. ३८२ । २. वही, पृ० ३८२। ३. गोडवोले और शर्मा—संपा० दशकुमारचरित ( बम्बई १९३६ ई० ) उच्छवास ६, “निम्बवतीकथा", पृ० २२७-२८ ४. दलाल, सी० डी०-डिस्कृप्टिव कैटलॉग ऑफ मैन्युस्कृिप्ट्स इन द जैन भण्डार्स ऐट पाटन-पृ० १५६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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