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________________ २२६ पश्चिम भारत के जैन तीर्थ का स्पष्ट रूप से प्रभाव परिलक्षित होता है। इस आधार पर जिनप्रभसूरि का यह कथन कि "जयसिंह सिद्धराज ने अभयदेवसूरि का सम्मान किया था", सत्य प्रतीत होता है। अभयदेवसूरि के पश्चात् उनके पट्ट पर उनके शिष्य मलधारी हेमचन्द्रसूरि प्रतिष्ठित हुए।' उनके द्वारा कोकावसति पार्श्वनाथ चैत्यालय का निर्माण कराया गया। इस सम्बन्ध में जिनप्रभ ने जिस घटनाक्रम का उल्लेख किया है, वह असम्भव नहीं लगता। ____ मालवा के सुल्तान द्वारा गुजरात पर चढ़ाई करने और भीम को पराजित कर अणहिलपुरपत्तन को लटने एवं उस पर अधिकार करने का ग्रन्थकार ने उल्लेख तो किया है, परन्तु उस आक्रामक सुल्तान के नाम और उक्त घटना के समय के बारे में वे मौन हैं। वस्तुतः भीम 'द्वितीय' ( ई० सन् ११७८-१२४१ ) के समय मालवा में कोई मुस्लिम शासक नहीं था, उस समय वहाँ परमारों का शासन था। यद्यपि परमार नरेश सुभटपाल (ई० सन् ११९४-१२०९) ने अणहिलवाड़ पर चढ़ाई कर उसे जीत लिया था, परन्तु शीघ्र ही उसे वहाँ से हटना पड़ा। ऐसी स्थिति में उसके द्वारा वहीं तोड़फोड़ करने का प्रश्न ही नहीं उठता। एक हिन्दू राजा द्वारा शत्रुदेश में भी मन्दिरों के तोड़ने का कोई उदाहरण नहीं मिलता। अतः यह निश्चित है कि जिनप्रभसूरि द्वारा उल्लिखित आक्रमणकारी मालवा का नहीं अपितु दिल्ली का सुल्तान हो सकता है। वास्तव में दिल्ली के सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक ( ई० सन् १२०६-१२१०) ने ई० सन् ११९७ में गुजरात पर चढ़ाई की थी तथा चौलुक्य नरेश भोम 'द्वितीय' को पराजित कर उसकी राजधानी अणहिलवाड़ पर अधिकार कर लिया था। इस १. "श्रीमदभषदेवसूरि-चरणाम्बुजञ्चरीकश्रीहेमचन्द्रसूरिविरचितमावश्यकवृत्तिप्रदेशव्याख्यानं समाप्तमिति ।” -आवश्यक-टिप्पन गांधी, लालचन्द भगवान्-ऐतिहासिकजैनलेखो, पृ०५१,पादटिप्पणी-१ २. अस्मिन् राजनि राज्यं कुर्वाणे श्रीसोहडनामा मालव भूपति गुर्जरदेश विध्वं. सनाय सीमामागतः ......................... । मुनि जिनविजय संपा० प्रबन्धचिन्तामणि, पृ० ९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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