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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन २११ १. वनराज २. योगराज ३. क्षेमराज चामुण्डराज चाहड़ ४. वैरसिंह ५. रत्नादित्य ६. सामन्तसिंह चौलुक्यों की वंशावली, जिसका ग्रन्थकार ने उल्लेख किया है, पूर्णतः प्रामाणिक मानी जाती है।' चौलुक्यों के पश्चात् गुर्जरदेश में वाघेलों का शासन प्रारम्भ हुआ। जिनप्रभसूरि द्वारा उल्लखित वाघेल राजाओं की वंशावली के प्रथम दो राजा लवणप्रसाद और वीरधवल चौलुक्य नरेश भीम 'द्वितीय' ( वि० सं० १२३४-१२९८ ) के सामन्त थे। भीम द्वितीय' एक दुर्बल शासक था और वास्तविक सत्ता इन्हीं के हाथों में केन्द्रित थी, अतः उसके मृत्यु के पश्चात् इन्होंने सत्ता अपने हाथ में ले ली।३ इस वंश का प्रथम स्वतन्त्र शासक वीसलदेव और अन्तिम शासक कर्णदेव था। कर्ण के पश्चात् यहाँ अलाउद्दीन खिलजी का शासन प्रारम्भ हो गया। इस प्रकार स्पष्ट है कि जिनप्रभसूरि द्वारा उल्लिखित चापोत्कटों, चौलुक्यों एवं बाघेलों की वंशावली प्रायः प्रामाणिक है। १. पारीख और शास्त्री-पूर्वोक्त, भाग ४, पृ० ५६० । २. वही, पृ० ७८ । ३. प्रबन्धचिन्तामणि (पृ० १०४) के अनुसार भीम 'द्वितीय' के पश्चात् वीसलदेव के हाथों में सत्ता आ गयी, परन्तु कुछ पट्टावलियों और वि० सं० १२९९ के एक दानशासन के अनुसार भीम 'द्वितीय' की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र त्रिभुवनपाल शासक बना। इस आधार पर कुछ विद्वानो ने उसे भी ऐतिहासिक माना है। द्रष्टव्य-पारीख और शास्त्री पूर्वोक्त, पृ० ८०। ४. वही, भाग ४, पृ० ९८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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