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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन २०९ निर्देशानुसार निर्दिष्ट स्थान से जिन प्रतिमायें प्राप्त की और चैत्य निर्मित कर उसमें उन्हें स्थापित कर दिया। एक बार ब्रह्माणगच्छीय आचार्य यशोभद्रसूरि खंभात नगरी से भ्रमण करते हुए वहां आये । श्रावकों के अनुरोध पर उन्होंने उक्त चैत्य में पूजन-वन्दन किया और मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन ध्वजारोहण महोत्सव किया। यह महोत्सव वि. सं. ५०२ में सम्पन्न हुआ। आज भी उसी दिन प्रतिवर्ष ध्वजारोहण महोत्सव किया जाता है । वि० सं० ८०२ में चापोत्कटवंशीय वनराज ने पाटन ( अणहिलपुर पाटन ) नगरी को बसाया। उसके वंश में कुल सात राजा हुए। १-वनराज, २-जोगराज, ३-क्षेमराज, ४-भूअड़, ५-वयरसिंह, ६-रत्नादित्य और ७-सामन्तसिंह । इनके पश्चात् चौलुक्यवंशीय राजाओं का शासन प्रारम्भ हुआ। इस वंश में कुल ११ राजा हुए। • १-मूलराज, २-चामुण्डराज, ३-वल्लभराज, ४-दुर्लभराज, ५-भीमदेव 'प्रथम', ६-कर्णदेव, ७-जयसिंहदेव, ८-कुमारपालदेव, ९-अजयपाल, १०-मूलराज और ११-भीमदेव 'द्वितीय' । इसके पश्चात् बघेलवंशीय ६ राजाओं का शासन प्रारम्भ हुआ, ये राजा हैं –१-लवणप्रसाद, २-वीरधवल, ३-वीसलदेव, ४-अर्जुनदेव, ५-सारंगदेव और ६-कर्णदेव । इसके पश्चात् गूर्जरदेश में सुल्तान अलाउद्दीन का शासन प्रारम्भ हो गया।" ब्रह्माणगच्छ चन्द्रकुल ( बाद में चन्द्रगच्छ ) की एक शाखा और चैत्यवासीगच्छों में प्रमुख था। यह गच्छ ई० सन् की ११वीं शती के लगभग अर्बुदमण्डल में स्थित वरमाण नामक तीर्थस्थान से अस्तित्व ने आया।' यशोभद्रसूरि इस गच्छ के पुरातन आचार्य माने जाते हैं । वि० सं० ११२४ के प्रतिमालेखों में इनका उल्लेख मिलता है । अतः १. नाहटा, अगचन्द -- "श्वेताम्बर श्रमणोंके गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश" यतीन्द्रसूरिअभिनन्दनग्रन्थ, पृ० १३५-१६५ ।। २. श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीजसोभद्रसूरिभूषिते स्वापितुरम्नय तस्य श्रेयसे - मूलप्रासादे .. ".... ... ... कारितः सं० ११२४ । सं० ११२४ श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीजसोभद्राचार्या जसोवर्धनवैरसिंहजज्जकप्रभृतैः पधरिनागदेव्यो पितृमात्रोनिमित्त कारितेयं प्रतिमा । मुनि जिनविजय-संपा० प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग-२,लेखाङ्क ४६३,४६४ प्रतिष्ठा स्थान---जैन मंदिर-रांतेज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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