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________________ १७६ पश्चिम भारत के जैन तीर्थ कराया। इसी प्रकार वि० सं० १२८८ में तेजपाल ने 'लूणवसही' का निर्माण कराया। मुस्लिम आक्रामकों ने इन दोनों मंदिरों को क्षतिग्रस्त कर दिया, तत्पश्चात् वि० सं० १३७८ में महणसिंह के पुत्र लल्ल ने 'विमलवसही' तथा चण्डसिंह के पुत्र पेथड़ ने 'लूणवसही' का पुनर्निर्माण कराया। चौलुक्यनरेश कुमारपाल ने भी यहाँ पर्वतशिखर भगवान् महावीर का एक चैत्य निर्मित कराया।" आबू पर्वत पर श्रीमाता ( कुंआरी कन्या ) का एक मन्दिर विद्य. मान है । इस देवी ( श्रीमाता ) के बारे में स्थानीय लोगों में भी प्रायः उसी प्रकार की किंवदन्ती प्रचलित है। जैसा जिनप्रभसूरि द्वारा उल्लिखित है। अबुंदगिरि के नामकरण सम्बन्धी जो बात जिनप्रभ ने बतलायी है, वह महाभारत तथा पुराणों में विस्तृत रूप से कही गयी है। राम के गुरु वशिष्ठ का आश्रम यहीं था, यह बात ब्राह्मणीय परम्परा के पुराणों से ज्ञात होती है। ____ आज यहाँ वशिष्ठाश्रम नामक जो मन्दिर विद्यमान है वह वि०सं० १३९४ के लगभग निर्मित कराया गया है। यहाँ एक कुंड भी है जिसमें पाषाण निर्मित गाय के मुख से सदैव जल की एक क्षीण धारा गिरती रहती है, यह 'गोमुखकुण्ड' के नाम से प्रसिद्ध है ।" जिनप्रभसूरि ने संभवतः इसी को 'गोमुखयक्ष' के नाम से उल्लिखित किया है । 'अचलेश्वर' एवं 'मन्दाकिनी' आदि जिन लौकिक तीर्थों की ग्रन्थकार ने चर्चा की है वे आज भी यहाँ विद्यमान हैं । अचलगढ़ के नीचे तलहटी में 'अचलेश्वरमहादेव' का एक प्राचीन एवं महिम्न मंदिर है। इसके चारों ओर चहारदीवारी है। ब्राह्मणीय परम्परानुसार 'अचलेश्वरमहादेव' आबू के अधिष्ठायक देव माने जाते हैं। आबू पहले परमारों, तत्पश्चात् चाहमानों के अधीन रहा । चाहमानों ने 'अचले१. मुनि जयन्तविजय-आबू, भाग-१ पृ० २०५, पादटिप्पणी २. महाभारत की नामानुक्रमणिका, पृ० २४; ___Dave, J.H. Immortal India Vol. III, p. 61 ३. काणे, पी० वी०-धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग-३, पृ० १४०४ ४. मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, पृ० २३४ ५. वही, पृ० १९५-२०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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