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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
८. सम्मेतशिखर
आचार्य जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के 'चतुरशीति महातीर्थनामसंग्रहकल्प' के अन्तर्गत सम्मेतशिखर का भी उल्लेख किया है और यहां २० तीर्थंङ्करों के निर्वाण प्राप्त करने का उल्लेख किया हैसंमेतशैले विसतिजिनाः ।
सम्मेत (सम्मेद शिखर जैनधर्मानुयायियों का एक अत्यन्त पवित्र तीर्थ है । शत्रुञ्जय, गिरनार आदि सर्वमान्य तीर्थों के साथ इसको गणना की जाती है । जैन मान्यतानुसार २४ तीर्थङ्करों में से ऋषभ, वासुपूज्य नेमिनाथ और महावीर को छोड़कर शेष २० तीर्थङ्करों का यहां निर्वाण 'हुआ
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१. ( i ) मल्ली णं अरहा पणुवीसं धणूई उड्ढं उच्चतेणं, वण्णेणं पियंगुसामे समचउरंस संठाणे वज्जरिसह - संघयणे मज्झदेसे सुहंसुहेणं विहरित्ता जेणेव सम्मेए पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सम्मेयसेलसिहरे पाओवगमणंणुवन्ने || ज्ञातृधर्मकथा १।८।२२४ ( ii ) अट्ठावय-चंपुज्जेत - पावा- सम्मेयसेलसिहरेसु ।
उसभ वसुपुज्ज नेमी वीरो सेसा य सिद्धिगया ||
आवश्यकनिर्युक्तिसूत्र - ३०७
(iii) आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ० २५७ (iv) तिलोयपण्णत्ती, ४।११८६-१२०७
(v) शेषास्तु ते जिनवरा जितमोहमल्ला ज्ञानार्कभूरिकिरणैरवभाष्य
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लोकान् ।
स्थानं परं निरवधारितसौख्यनिष्ठं सम्मेदपर्वततले समवापुरीशाः ।। निर्वाणभक्ति २५
(vi) शेषा जिनेन्द्रास्तपसः प्रभावाद् विधूय कर्माणि पुरातनानि । धीराः परां निर्वृत्तिमभ्युपेताः संमेदशै लोपवनान्तरेषु ॥ वराङ्गचरित २७।९२ (vii) अन्ते स संमदविधायिवनान्तकान्तं सम्मेदशैलमधिरुह्य निरस्तबन्धः ।
हरिवंशपुराण १६।७५
(viii) उत्तरपुराण पर्व ४८-७३
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