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________________ १४२ पूर्व भारत के जैन तीर्थ किया है, वे जैन परम्परा पर आधारित हैं।' इस नगरी में मुनि सुव्रत के जन्म होने', यहां स्थित गुणशील चैत्य में महावीर के समवसरण लगने, नालन्दा में उनके १४ वर्षावास व्यतीत करने एवं उनके ९ गणधरों का यहीं निर्वाण होने तथा अंतिम गणधर प्रभास के जन्म-सम्बन्धी जिनप्रभसूरि का विवरण भी जैन परम्परा पर ही आधारित है। उन्होंने इस नगरी के विशिष्ट व्यक्तियों यथा-अरासन्ध, श्रेणिक, कुणिक आदि नरेश; अभयकुमार, हल्ल विहल्ल आदि राजकुमारों, जम्बूम्वामी, कयदन्नाऋषि, पतिव्रता नंदा एवं श्रेष्ठी शालिभद्र का जो उल्लेख किया है, वह भी श्वेताम्बर जैन परम्परा पर आधारित है।५ ग्रन्थकार ने यहां कल्याणक स्तुप एवं उसके समीप गौतम स्वामी के मंदिर होने की बात कही है। हो सकता है उसके समय में यहां मंदिर एवं स्तूप विद्यमान रहे हों। यहां की आबादी (जनसंख्या) के बारे में उन्होंने जो बात कही है, उसे उनकी व्यक्तिगत कल्पना माननी चाहिये । __ वर्तमान बिहार राज्य के नालन्दा जिले में यह तीर्थ अवस्थित है। आज वैभारगिरि के अलावा अन्य चार पहाड़ियों पर भी दोनों सम्प्र. दायों के अलग-अलग जिनालय विद्यमान हैं। १. खितिवण उसभकुसग्गं, रायगिहं ...। आवश्यकनियुक्ति, सूत्र १२७९; आवश्यकचूर्णी, उत्तरभाग, पृ० १५८ २. [अ] आवश्यकनियुक्ति, सूत्र ३८३ [ब] रायगिहे मुणिसुव्वयदेवो पउमासुमित्तराएहिं अस्सजुदबारसीए सिदपक्खे सवणभे जादो ॥ तिलोयपण्णत्ती ४।५४५ श्रीसुव्रतो राजगृहे ...... । वराङ्गचरित २७।८४ ३. रायगिहं नगरं नालंदं च बाहिरियं नीसाए चोद्दस अंतरावासे बासावासं उवागए । कल्पसूत्र-१२२ ४. परिनिव्वुया गणहरा जीवंते जायए नव जणा उ । इंदभूई सुहम्मो य, रायगिहे निव्वुए वीरे ।। । आवश्यकनियुक्ति, सूत्र-६५८ ५. इस सम्बन्ध में विस्तार के लिये द्रष्टव्य मेहता और चन्द्र--पूर्वोक्त, पृ० ६२७-२९ ६. तीर्थदर्शन, प्रथम खंड, पृ० ४१-४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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