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उत्तर भारत के जैन तीर्थ
गंगदत्त और कार्तिक श्रेष्ठी के सम्बन्ध में भगवतीसूत्र में विस्तार से विवरण प्राप्त होता है । वहाँ इन्हें हस्तिनापुर का निवासी बतलाया गया है। इन्होंने मुनिसुव्रत से दीक्षा ली और मोक्ष प्राप्त किया।'
जैसा कि पहले कहा जा चुका है जिनप्रभसूरि ने शक सं० १२५३ वैशाख शुक्ल ६ को संघ के साथ इस तीर्थ की यात्रा की थी। कन्यानयनीयमहावीरकल्पपरिशेष से जो उनके शिष्य विद्यातिलक द्वारा लिखित है, ज्ञात होता है कि जिनप्रभ ने हस्तिनापुर तीर्थ की यात्रा चाहड़शाह के पुत्र बोहित्थ के तीर्थयात्री संघ के साथ की थी और इस यात्रा के लिये उन्होंने स्वयं सुल्तान मुहम्मदतुगलक से फरमान भी प्राप्त किया था। __ ग्रंथकार ने अपने समय में यहां गंगातट पर शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ और अम्बिका देवी के चैत्यालय होने का जो उल्लेख किया है, वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि इस यात्रा के दौरान उन्होंने जिनालयों में मूर्तियां भी प्रतिष्ठित की।' यद्यपि यहाँ आज जिनप्रभसूरि के समय का कोई जिनालय तो विद्यमान नहीं है फिर भी यहां पर जो उत्खनन कार्य हुए हैं उनसे स्पष्ट होता है कि १४वीं शती में यहां जैन धर्म विद्यमान था। इस सम्बन्ध में यहां से उत्खनन में प्राप्त ऋषभदेव की ध्यानावस्थित प्रतिमा का उल्लेख किया जा सकता है। परवर्ती काल में भी यहां जैनोंकाअस्तित्व रहा, क्योंकि उत्तर-मध्ययुगीन जैन ग्रन्थकारों ने इस तीर्थ का उल्लेख किया है।
वर्तमान में यहां श्वेताम्बरों और दिगम्बरों के अलग-अलग जिनालय हैं जो वर्तमान युग के हैं। यह तीर्थ मेरठ जिले में अबस्थित है और आज भी अपने पुराने नाम से ही प्रसिद्ध है । १. भगवतीसूत्र १६।५।५७७; १८।२।६१८ । २. द्रष्टव्य-कल्पप्रदीप (विविधतीर्थकल्प) के अन्तर्गत "कन्यानयनीयमहा
वीरप्रतिमाकल्प"। ३. एन्शेन्ट इंडिया, जिल्द १०, पृ० ९० । ४. विजयधर्मसूरि,-प्राचीनतीर्थमालासंग्रह पृ० ३९-४० । ५. तीर्थदर्शन-खंड १, पृ० १२०-१२३ । ६. जैन, जगदीशचन्द्र-भारत के प्राचीन जैन तीर्थ, पृ० ४६ ।
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