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________________ ११८ उत्तर भारत के जैन तीर्थ केवलज्ञान पौष कृष्ण ९, चैत्र शुक्ल ३ और ऊर्ज शुक्ल १२ । निर्वाण ज्येष्ठ कृष्ण १३, वैशाख शुक्ल १५ और मार्गशीर्ष शुक्ल १० । इसी नगरी में विष्णुकुमार ने नमुचि के राज्य को ३ पगों में नाप लिया था। सनत्कुमार, महापद्म, सुभूम और परशुराम आदि महापुरुष, कोरव-पाण्डव आदि राजा तथा गंगदत्त एवं कात्तिक श्रेष्ठी इसी नगरी से सम्बन्धित थे ।। यहाँ गगातट पर शान्तिनाथ, कुन्थ नाथ, अरनाथ तथा अम्बादेवी के चैत्यालय हैं। शक सम्वत् १२५३ वैशाख शुक्ल तृतीया को मैंने (जिन प्रभ ने) तीर्थयात्रीसंघ के साथ यहां की यात्रा की।" जैन साहित्य में ऋषभदेव के १०० पुत्रों में कुरु का, जिन्हें कुरुक्षेत्र बसाने का श्रेय दिया जाता है, उल्लेख प्राप्त होता है, परन्तु हस्तिन् की जिसे जिनप्रभ ने कुरु का पुत्र बतलाया है, कोई चर्चा प्राप्त नहीं होती। ब्राह्मणीय परम्परानुसार भरतदोषयन्ति के पुत्र हस्तिन् के नाम पर इस नगरी का नाम हस्तिनापुर पड़ा। जिनप्रभसूरि ने कुरु और हस्तिन् में पिता-पुत्र का सम्बन्ध किस आधार पर स्थापित कर दिया है, कहा नहीं जा सकता। इसी प्रकार श्रेयांसनाथ, जिन्होंने ऋषभदेव को प्रथम पारणा कराया था, किसके पुत्र थे? इस प्रश्न पर जैन ग्रन्थकारों में मतभेद है। आवश्यकचूर्णी में उन्हें ऋषभदेव का पौत्र और भरत चक्रवर्ती का पुत्र बतलाया गया है। इसके विप. रीत आवश्यकवृत्ति (मलयगिरि-१२वीं शती) में उन्हें बाहुबलि का १. कल्पसूत्रवृत्ति (धर्मसागर) पृ० १५१ कल्पसूत्रवृत्ति (विनयविजय) पृ० ३३६ २. पाण्डेय, राजबली-पुराणविषयानुक्रमणिका, पृ० ४७६ ३. छउमत्थो य बरिसं बहली डबइल्लेहिं विहरिऊणं गजपुरं गतो, तत्थ भरहस्स पुत्तो सेज्जंसो---- आवश्यकचर्णी, पूर्व भाग, पृ० १६२ कुरुजणवए गयपुरं नाम नगरं, तध्थ बाहुबलिपुत्तो, सोमप्पभो राया, तस्स पुत्रो सेज्जंसो जुवराया। आवश्यकवृत्ति (मलयगिरि) पृ० २१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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