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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
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उल्लेख किया है, वे स्थानीय सामन्त शासक रहे होंगे। ग्रन्थकार के समय इस नगरी का नाम महेठ था, आज भी इसे सहेठ-महेठ ही कहते हैं । यहाँ गहडवाल युग का ईंटों से निर्मित एक ध्वस्त मंदिर विद्यमान है, जिसे शोभनाथ का मदिर कहा जाता है। शोभनाथ संभवनाथ का ही अपभ्रंश है । इस मंदिर की खुदाई से कई तीर्थङ्कर प्रतिमायें, स्तम्भ, तोरण आदि प्राप्त हुए हैं। सभी पुरावशेष ९वीं से १२वीं शती तक के हैं और आज लखनऊ तथा मथरा के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। इससे स्पष्ट होता है कि १२वीं शती तक यह एक समृद्ध नगरी के रूप में प्रतिष्ठित रही। मुस्लिम शासन के दौरान इसका महत्त्व कम होने लगा और अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण से तो यह नगरी सदैव के लिये उजड़ गयी। __ उत्तर प्रदेश के गोंडा जिलान्तर्गत राप्ती नदी (प्राचीन अचिरावती) के तट पर स्थित यह प्राचीन नगरी आज सहेठ-महेठ के नाम से जानी जाती है । यहाँ दोनों सम्प्रदायों के जिनालय हैं, जो अर्वाचीन हैं।
१२. शौरीपुर जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत शौरीपुर का उल्लेख किया है और यहाँ नेमिनाथ के मदिर होने की चर्चा की है।
१. दसवीं-ग्यारहवीं शती में यहां जैन धर्मावलम्बी शासक राज्य करते रहे ।
इसी वंश के एक शासक 'सुहृदध्वज' ने महमूद गजनवी के सालार (सेनापति) को परास्त कर मार डाला था । (जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ७, पृ० २७८-२८२) । जिनप्रभसूरि द्वारा इस राजवंश का उल्लेख न करना
आश्चर्यजनक है। २. आकियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया-वार्षिक रिपोर्ट, ई० सन् १९०७
-१९०८, पृ० ८२-१३१ । ३. वही। ४. जैन, जगदीशचन्द्र-भारत के प्राचीन जैन तीर्थ, पृ० ४० ।
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