SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ उत्तर भारत के जैन तीर्थ में ब्राह्मण, परिव्राजक, जटाधारी, योगी तथा चारों दिशाओं से आवे हुए लोग निवास करते हैं; जो रसविद्या, धातुविद्या, खननविद्या, मन्त्र - शास्त्र, तर्कशास्त्र, निमित्तशास्त्र, नाटक, अलंकार, ज्योतिष आदि के ज्ञाता हैं । यह नगरी चार भागों में विभक्त है प्रथम - देववाराणसी - जहाँ विश्वनाथ का मन्दिर है, उसमें २४ तीर्थङ्करों से युक्त एक पाषाण - पट्ट भी रखा हुआ है । -. द्वितीय - राजधानीवाराणसी - जहाँ यवन लोग रहते हैं । तृतीय- मदनवाराणसी और चतुर्थ - विजयवाराणसी । यहाँ अनेक लौकिक तीर्थ भी हैं । दण्डखात तालाब के निकट भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म स्थान है । यहाँ से तीन कोश दूर धर्मेक्षास्तूप एवं बौद्ध मन्दिर हैं तथा अढ़ाई योजन पर चन्द्रप्रभस्वामी का जन्मस्थान चन्द्रपुरी स्थित है ।" वाराणसी नगरी काशी जनपद की राजधानी थी ।" यह आज भी उत्तरवाहिनी गंगातट पर स्थित है । इस नगरी का नाम वाराणसी क्यों पड़ा ? इस सम्बन्ध में जैन साहित्य में कोई चर्चा नहीं मिलती । ग्रन्थकार ने इस सम्बन्ध में जो कारण बतलाये हैं, वे ब्राह्मणीय परम्परा के पुराणों में मिलते हैं, अतः यह माना जा सकता है कि इस बात को उन्होंने वहीं से लिया होगा । सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ और तेइसवें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के १. प्रज्ञापना ३७; निशीथचूर्णी, भाग २, पृ० ४६६; सूत्रकृतांगवृत्ति (शीलांक) पृ० १२३ २. काणे, पी० वी० -- धर्मशास्त्र का इतिहास ( हिन्दी अनुवाद ) खंड ३, पृ० १३४३; पाण्डेय, राजबली - हिन्दूधर्मकोश, पृ० ५८६; पुराणविषयानुक्रमणिका, पृ० ३८५-८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy