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________________ २ ४ - प्रतिष्ठानपुर ( पैठन) ५ - श्रीपुर (सिरपुर ) ६- सूर्पारक (सोपारा) इनमें से कोल्हापुर, डाकिनीभीमशंकर और सूर्पारक का चतुरशीतमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत उल्लेख है, शेष तीर्थों पर स्वतंत्र कल्प लिखे गये हैं । - आन्ध्रप्रदेश १ - आमरकुण्डपद्मावतीदेवी २ - कुल्पाकमाणिक्यदेव ३ - श्रीपर्वत (श्रीशैलपर्वत) तीर्थों का विभाजन इनमें से श्रीपर्वत का चतुरशीतिमहातीर्थ नाम संग्रहकल्प के अन्तर्गत उल्लेख है, शेष दोनों तीर्थों पर कल्प रूप में विवरण प्राप्त होता है । स- कर्णाटक १ - किष्किन्धा २ - दक्षिणापथ गोम्मटेश्वर बाहुबली (श्रवणबेलगोला) ३ - शंखजिनालय ( लक्ष्मेश्वर) इन तीर्थों का चतुरशीतिमहातीर्थ नाम संग्रहकल्प के अन्तर्गत उल्लेख है । ब- केरल जिनप्रभसूरि द्वारा उल्लिखित तीर्थों में से केवल एक तीर्थ इस प्रदेश में अवस्थित है और वह है मलयगिरि, जिसका चतुरशीतिमहातीर्थनाम संग्रहकल्प में उल्लेख है । इसके अलावा इस ग्रन्थ में कुछ ऐसे भी तीर्थों का उल्लेख है जो वर्तमान युग में ( राजनैतिक कारणों से ) देश की सीमा के बाहर स्थित हैं, यथा - अष्टापद (कैलाश - तिब्बत, चीन ) ; पारस्कर ( थरपाकरसिन्ध, पाकिस्तान ); वीतभयपुर (सिन्ध, पाकिस्तान ) त्रिकूटगिरि (श्रीलंका); सिंहलद्वीप ( श्रीलंका) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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