SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० [ [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४ द्वारा भारत पर किये गये प्राक्रमरणों, लूट, सामूहिक संहार, बलात्सामूहिक धर्मपरिवर्तनों, भारत के तत्कालीन अभिन्न अंग सिन्ध प्रदेश पर इस्लामी हुकूमत की संस्थापना आदि घटनाओं का वैष्णव, शैव, बौद्ध आदि विभिन्न भारतीय धर्मों की भांति जैन धर्म एवं जैन धर्मावलम्बियों पर भी घातक प्रभाव पड़ा । न केवल आगमिक आधारों पर ही अपितु प्राचीन पुरातात्विक अवशेषों से भी यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो जाता है कि मुसलमानों के आक्रमणों से पूर्व अनेकों सहस्राब्दियों तक सिन्ध प्रदेश जैन धर्म और जैन धर्मावलम्बियों का सुदृढ़ गढ़ रह चुका है । चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर के परम श्रद्धानिष्ठ भक्त सिन्धु - सौवीर के महाराजा उदायन ने प्रभु के पास भागवती श्रमरण दीक्षा अंगीकार कर मोक्षपद प्राप्त किया था । उदायन के शासनकाल में स्वयं श्रमरण भ० महावीर सिन्धु- सौवीर राज्य की राजधानी वीतभया में पधारे थे । सर्वज्ञ - सर्वदर्शी प्रभु महावीर के अमोघ उपदेशों को सुन कर सिन्ध प्रदेश और सौवीर के निवासी कितनी बड़ी संख्या में जैनधर्म के श्रद्धानिष्ठ अनुयायी बने होंगे, इसका आज अनुमान तक नहीं किया जा सकता । किन्तु सिन्ध पर अरब सेनाओं के प्राक्रमरण काल में जो सामूहिक संहार, सामूहिक बलात् धर्म-परिवर्तन हुए, सामूहिक रूप से सिन्ध के निवासियों को तलवार की तीक्ष्ण धार के बल पर मुसलमान बनाया गया । जिसने अपना धर्म छोड़ना स्वीकार नहीं किया उसे मौत के घाट उतार दिया गया । उस सबका परिणाम यह हुआ कि सिन्ध में जैन धर्म अथवा जैन धर्म के अनुयायी की बात तो दूर, वहां जैन धर्म का नाम तक लेने वाला अवशिष्ट नहीं रहा । इस सब हृदयद्रावी घटना चक्र से प्रत्येक पाठक पूरी तरह परिचित हो जागरूक बन जाय और अपनी भावी पीढ़ियों को सदा जागरूक रहने का संदेश देता रहे, इसी सदुद्देश्य से विस्तारपूर्वक इस सब घटना चक्र का विवरण यहां प्रस्तुत किया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy