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वि० सं० १३५७ से वि० सं० १३८२ तक की
अवधि की राजनैतिक स्थिति
दिल्ली में खिलजीवंश के राज्यकाल में अल्लाउद्दीन खिलजी ने राजपूताने के राज्यों पर अधिकार करने के निश्चय के साथ सर्वप्रथम वि० सं० १३५७ में रणथंभौर पर आक्रमण किया। रणथंभौर के चौहान वंशीय राजा हमीर ने शत्रु को परास्त करने के संकल्प के साथ बड़ी वीरता से युद्ध किया किन्तु कड़े संघर्ष के पश्चात् अल्लाउद्दीन खिलजी ने रणथंभौर के किले पर अधिकार कर लिया और इस प्रकार वि० सं० १२५० के पास-पास पृथ्वीराज चौहान के पुत्र गोविन्द राज द्वारा संस्थापित रणथंभौर का चौहान राज्य समाप्त हो गया।
रणथम्भौर पर अधिकार करने के तीन वर्ष पश्चात् वि० सं० १३६० में अल्लाउद्दीन खिलजी ने अपनी सशक्त एवं विशाल सेना ले चित्तौड़ पर आक्रमण किया। मेवाड़ के रावल रतन सिंह ने अद्भुत साहस एवं शौर्य प्रकट करते हुए लगभग ६ मास तक खिलजी की सेनाओं से लोहा लिया। अन्ततोगत्वा मेवाड़ के रावल रतन सिंह ने अपने पुत्रों, पौत्रों, पारिवारिक जनों, सरदारों एवं राजपूत योद्धाओं के साथ केसरिया बाना पहन कर चित्तौड़ के किले के द्वार खोल अपने प्राणों को हथेली पर रख शत्रु सेना पर भीषण आक्रमण किया। अन्तिम श्वास तक शत्रु सेना का संहार करते हुए रावल रतन सिंह अपने पुत्रों, पौत्रों एवं योद्धाओं के साथ अपनी मातृभूमि की रक्षा हित वीरगति को प्राप्त हुए । रावल रतन सिंह की महाराणी पद्मिनी ने जब यह देखा कि उसके पति अपने शूरमा योद्धामों के साथ शत्रु सेना पर प्रलय ढ़हाते हुए वीर-गति को प्राप्त हुए हैं, तो मेवाड़ की. महारानी पद्मिनी ने भी सहस्रों राजपूत रमणियों के साथ जौहर की ज्वालामों में प्रवेश कर राजपूती आन-बान-शान एवं सतीत्व की रक्षा की। अल्लाउद्दीन खिलजी ने साक्षात् श्मशान बने चित्तौड़ के दुर्ग पर अधिकार कर अपने पुत्र खिजर खां को चित्तौड़ का शासक नियुक्त किया।
चित्तौड़ पर अधिकार कर लेने के पश्चात् अल्लाउद्दीन खिलजी ने वि० सं० १३६५ में सिवाणा पर आक्रमण किया। सिवारणा के राजा शीतल देव चौहान ने अपने दुर्ग की रक्षा करते हुए रणांगण में वीर गति प्राप्त की। इस प्रकार अल्लाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा के किले पर भी अधिकार कर लिया। तदनन्तर अल्लाउद्दीन खिलजी ने वि० सं० १३६८ में जालौर पर आक्रमण किया। जालौर के राजा कान्हड़देव और राजकुमार वीरमदेव ने शत्रु सेना से बड़े शौर्य एवं साहस के साथ लोहा लिया। शत्रुओं का संहार करते हुए पिता और पुत्र
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