SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 853
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८३४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास--भाग ४ में एकत्रित हुए । वर्षा होने व मार्ग में लीलन-फूलन के उत्पन्न हो जाने के कारण वे चारों संघ अहमदाबाद में रुक गये । चारों संघों के संघपतियों और लोगों को जब ज्ञात हुआ कि लोंकाशाह अपने आगमिक व्याख्यानों में जैन धर्म के सच्चे स्वरूप पर प्रकाश डालते हैं तो वे सभी संघपति अपने-अपने संघों के लोगों के साथ लोकाशाह का व्याख्यान सुनने के लिए गये। लोकाशाह के व्याख्यान को सुनकर पहले ही दिन उन लोगों के अन्तर्चक्षु उन्मीलित होने लगे। उन्होंने अनुभव किया कि कहां तो एक ओर आगमों में वर्णित जैन धर्म का विशुद्ध आध्यात्मिक स्वरूप एवं अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की पराकाष्ठा के आत्मविशुद्ध कारक उच्चतम आध्यात्मिक भावों से ओत-प्रोत शूरवीरों द्वारा आचरणीय, तलवारों की तीक्ष्ण धार पर चलने के समान अति दुश्चर, अति दुष्कर, नितान्त निरतिचार, नितान्त निर्दोष, एकमात्र मोक्ष प्राप्ति की उत्कट स्पृहा से पालनीय श्रमण धर्म का स्वरूप और कहां दूसरी ओर घोर शिथिलाचार में आनखशिख निमग्न परिग्रहग्रस्त एकमात्र धन के लोलुप साधु नामधारी यतियों द्वारा प्राचरित एवं प्रदर्शित प्ररूपित बाह्याडम्बरपूर्ण, विकारों से भरा धर्म का नितान्त विकृत स्वरूप । उन सबके अन्तर्मन लोकाशाह को सुनकर पहले दिन ही इस प्रकार आन्दोलित हो उठे। वे सभी नित्य नियमित रूप से लोंकाशाह के उपदेशों को, प्रागमिक प्रवचनों को सुनने के लिए जाने लगे। सर्वज्ञ प्रभु द्वारा प्ररूपित-प्रदर्शित धर्म के विशुद्ध प्रागमिक स्वरूप के प्रति लोकाशाह के उपदेशों से उनकी आस्थाश्रद्धा उत्तरोत्तर बढ़ती ही गई । वे लोग लोकाशाह के अनन्य परम भक्त बन गये।" आशा है विद्वान शोधार्थी इस सम्बन्ध में गहन शोध कर काल सम्बन्धी वास्तविक प्रांकड़े प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे। एक पातरिता (पोतिया बन्ध) पट्टावली में लोंकाशाह के पारिवारिक जीवन का परिचय मरुधरा के खरंटिया नामक नगर के जोधावंशीय जागीरदार दुर्जनसिंह के बोसा भोसवाल मेहता कामदार के दो पुत्र थे। बड़े का नाम था मेहता जीवराज और छोटे का मेहता लखमसी। वे दोनों भाई विपुल सम्पत्ति के स्वामी, खरतर गच्छ के अनुयायी और जीवाजीवादि तत्वों के जानकार थे। किसी कारणवश मरुधराधीश राव जोधा जी के पुत्र रतनसिंह का पुत्र दुर्जनसिंह उन दोनों भाइयों से रुष्ट हो गया और उसने उनकी सम्पूर्ण सम्पत्ति अपने अधिकार में कर ली। वे दोनों भाई व्यापारार्थ घूमते-घूमते पाटण नगर में पहुंचे। वहाँ पूनमियां गच्छ के प्राचार्य प्रानन्द विमलसूरि के शिष्य खेमचन्द्र को दशवैकालिक सूत्र लिखते हुए उन दोनों भाइयों ने उपाश्रय में देखा। लखमसी ने खेमसी से सूत्र और पत्र लेकर पत्रों में "धम्मोमंगलमुक्किट्ठ" प्रभृति कतिपय गाथाएं लिखीं। मुनि खेमसी उस नवागन्तुक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy