SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 850
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] सावधानी के साथ समय-समय पर निष्पादन करते रहे। लगभग १८ वर्ष की वय में उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई। दादा-दादी के हर्ष का पारावार न रहा । उन्होंने अपने पौत्र का नाम पूर्णचन्द्र रखा। जिस समय लोकचन्द्र तेवीस वर्ष की वय के हुए उस समय उनकी माता गंगाबाई ने और उसके एक वर्ष पश्चात् ही उनके पिता हेमाभाई ने परलोक गमन किया। लोकाशाह का मुख्य व्यवसाय कृषकों के साथ लेन-देन करने का था। काल दुष्काल के कारण जब कृषकों को फसलें नष्ट हो जाती, तो उस दशा में कृषकों से अपना पैसा वसूल करते समय उन्हें आन्तरिक कष्ट होता था। कृषकों को दी हुई रकम समय पर वसूल करने में भी दयार्द्र प्रकृति के लोकचन्द्र को अनेक प्रकार की कठिनाइयां होती थीं । इस कारण भी बहुत समय से लोकचन्द्र कृषकों के साथ लेनदेन का धंधा समेट कर किसी बड़े नगर में जवाहरात का व्यवसाय करने के इच्छुक थे। उन दिनों सिरोही राज्य और पाबू पर्वत के समीपस्थ चन्द्रावती राज्य के बीच सम्बन्ध बिगड़ चुके थे। आये दिन शत्रों के आक्रमण और अराजकता जैसी स्थिति के परिणामस्वरूप लूट-खसोट, मार-धाड़ का डर प्रजाजनों को बना ही रहता था । इस प्रकार के अराजकतापूर्ण अशान्त वातावरण को अपनी प्राध्यात्मिक साधना एवं मानसिक शान्ति के लिए भी बाधक समझ कर वे उस अशान्त वातावरण से निकलने के लिए अपना पैत्रिक गांव छोड़ किसी बड़े नगर में व्यवसाय करने के इच्छुक थे। अपने माता-पिता के देहावसान के कुछ समय पश्चात् युवक लोकचन्द्र ने कृषकों के साथ लेन-देन के अपने व्यवसाय को समेटना प्रारम्भ कर दिया और किसानों से जो कुछ मिला लेकर वे अपनी पत्नी और पुत्र के साथ अपनी प्रायु के पच्चीसवें वर्ष (वि० सं० १४६७) में अहमदाबाद आये। सुविधा सम्पन्न एक गृह लेकर उसमें उन्होंने निवास किया और वे वहां जवाहरात का व्यवसाय करने लगे। लोकाशाह द्वारा अहमदाबाद में जवाहरात का व्यवसाय प्रारम्भ किये जाने के थोड़े ही समय पश्चात् वि० सं० १४६७ में मोहम्मदशाह अहमदाबाद (गुजरात) राज्य के राज्य सिंहासन पर बैठा और उसने जवाहरात खरीदने का निश्चय किया। सभी जौहरियों को राज दरबार में बुलाया गया । अतः अन्यान्य बड़े-बड़े जौहरियों के साथ लोकाशाह भी मोहम्मद शाह के दरबार में पहुंचे। सभी रत्न-व्यवसायियों ने अपने-अपने बहुमूल्य रत्न मोहम्मद शाह के समक्ष उनकी विशेषता बताते हुए रखे । सूरत के जौहरी द्वारा दिखाये गये पानीदार मोतियों में दो बड़े-बड़े मोती उसे बहुत अच्छे लगे। पूछने पर सूरत के जौहरी ने उन जामुन तुल्य बड़े-बड़े मोतियों का मूल्य १,७२,००० रु० बताया। मोहम्मदशाह ने वहां उपस्थित जौहरियों को उन दोनों मोतियों की परीक्षा और उनका मूल्य निर्धारित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy