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________________ ८२६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ ने वि० सं० १५०८ में समग्र क्रान्ति का सूत्रपात किया, उससे जैन धर्मावलम्बियों के अन्तर्चक्षु उन्मीलित हुए। अभिनव जागरण की एक अमिट लहर आर्यधारा के इस छोर से उस छोर तक तरंगित हो उठी। मुक्तिकामी सच्चे मुमुक्षुत्रों ने अनागमिक आचार-विचार एवं विकृतियों का परित्याग कर विशुद्ध आगमिक पथ को अपनाया। आज न केवल लोकाशाह द्वारा प्रदर्शित विशुद्ध मूल आगमिक पथ के पथिकों एवं उनके अनुयायियों में ही अपितु सम्पूर्ण जैन संघ में धर्म के आडम्बर विहीन आध्यात्मिक स्वरूप के प्रति जो प्रेम परिलक्षित होता है, वह प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष किसी न किसी रूप में लोंकाशाह द्वारा प्रारम्भ की गई शान्तिपूर्ण धर्मक्रान्ति का ही प्रतिफल है। यदि लोंकाशाह द्वारा वि० स० १५०८ में धर्मक्रान्ति का सूत्रपात नहीं किया जाता तो आज चरण विहारी, अनियतवासी, विहरूक, निष्परिग्रही आचार्यों एवं श्रमण-श्रमणियों के स्थान पर छत्र-चामरधारी निर्वाणकलिका के विधानानुसार सुहागिन स्त्रियों से तैलमर्दन-पीठी आदि करवाने और स्वर्ण कंकण, स्वर्णमुद्रिका धारण करने वाले, हस्ती, अश्व, शिबिका आदि परिग्रह के अम्बार से आछन्न हुए प्राचार्यों एवं सन्तों का ही यत्र-तत्र-सर्वत्र बोलबाला होता । इस प्रकार की अनेकानेक अगणित बुराइयां जैन समाज में घर की हुई थीं। उनमें से बहुत सी बड़ी-बड़ी बुराइयां लोकाशाह द्वारा प्रचलित धर्मक्रान्ति के प्रवाह में बह गईं। आज जैन संघ में न ऐसे गुरु ही दृष्टिगोचर होते हैं और न अन्य इस प्रकार के अन्ध श्रद्धालु भक्तजन ही। यह सब लोकाशाह के अमित ओजपूर्ण प्रयासों का ही प्रतिफल है, जिसके लिए जैन समाज की भावी पीढ़ियां "प्राचन्द्रदिवाकरौं" लोकाशाह के प्रति आभारी रहेंगी। कोटिशः प्रणाम हैं उन महात्मा को। पारिवारिक एवं वैयक्तिक जीवन परिचय जहा तक लोकाशाह के पारिवारिक अथवा वैयक्तिक जीवन परिचय का प्रश्न है, जैन वाङ्मय में अनेक प्रकार के परस्पर विरोधी एवं भ्रामक उल्लेख उपलब्ध होते हैं। पिछले अध्याय में अद्यावधिपर्यन्त उपलब्ध हए अथवा प्रकाश में पाये उन सभी उल्लेखों को शोधार्थियों की एतद्विषयक अग्रेसर शोध में सहायक समझकर प्रस्तुत ग्रन्थ में समाविष्ट कर लिया गया है। यों तो विचार किया जाय तो किसी भी महापुरुष की महानता की द्योतक उनकी समाज के आध्यात्मिक, नैतिक एवं सुसभ्योचित सामाजिक धरातल को समुन्नत करने वाली सृजन शक्ति ही है । अतीत में हुए अनेक ऐसे परोपकारी महापुरुषों का पारिवारिक परिचय उपलब्ध नहीं होता किन्तु जन-जन के लिये परम श्रेयस्कर प्रशस्त पथ प्रदर्शित करने वाला केवल उनकी सृजनात्मक कृतित्व का परिचायक उनके आध्यात्मिक जीवन का ही परिचय उपलब्ध होता है। तो इस प्रकार की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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