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लोकाशाह का जीवन परिचय
प्राध्यात्मिक जीवन
लोकाशाह के, लोकमान्य महान् विभूतियों, अनुपम अध्यात्मयोगी महान् आत्माओं के तुल्य नितान्त निर्भीक, अमित ओजस्वी, शरद् पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्र की दुग्ध-धवला चन्द्रिका के समान शीतल-स्वच्छ-अच्छ उदात्त जीवन-चरित्र पर चिन्तन करते समय ऐसा आभास होता है कि जिस अदृष्ट-अमूर्त-दिव्य शक्ति को अपने अन्तःकरण में अवस्थित कर मुमुक्षु जन युगादि से ही प्रार्थना करते आ रहे हैं"असतो मां सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमयः", वही अदृष्ट-अमूर्त-दिव्य शक्ति मूर्त रूप धारण कर लोंकाशाह में प्रकट हो गई थी। अनेक जन्म-जन्मान्तरों की अथक अनवरत साधना के अनन्तर जो अचिन्त्य अमित-अहष्ट-प्रमूर्त दिव्य शक्ति लोंकाशाह में मूर्त रूप से प्रकट हुई उसी का प्रभाव और परिणाम था कि लोंकाशाह ने लगभग एक सहस्राब्दि से घोर असत् एवं अज्ञानान्ध तम के निबिड़तम अन्धकार की ओर प्रवृत्त-उन्मुख आर्यधरा के जैन जगत् को श्रवण भगवान् द्वारा प्रदशित प्रकाश और सत्पथ की ओर अग्रसर किया। चतुर्विध जैन धर्म संघ में रूढ "गड्डरी-प्रवाह" को शार्दूलविक्रीडित में परिवर्तित एवं प्रवृत्त किया। लोकाशाह ने तत्कालीन चतुर्विध जैन धर्म संघ की अस्थि-मज्जा और रोम-रोम में रची-पची, घुली-मिली एवं नस-नस में रमी हुई अनागमिक आडम्बरपूर्ण मिथ्या मान्यताओं-विविध विकृतियों-बुराइयों, श्रमण-श्रमणीवर्ग में व्याप्त सार्वत्रिक शिथिलाचार तथा असाधुजनोचित प्रवृत्तियों और धर्म के मूल आगमिक विशुद्ध स्वरूप में समय-समय पर स्वार्थलोलुप द्रव्य परम्पराओं के सूत्रधारों द्वारा प्रविष्ट कराई गई विकृतियों को मूलतः विनिष्ट कर देने के सदुद्देश्य से, धर्मोद्धार के पुनीत लक्ष्य से एक सशक्त धर्मक्रान्ति का सूत्रपात्र किया । अध्यात्म प्रधान धर्म के विशुद्ध स्वरूप पर निहित स्वार्थ द्रव्य परम्पराओं के जन्मदाताओं द्वारा छा दिये गये बाह्याडम्बर एवं अधर्मपूर्ण भौतिकता प्रधान कर्मकाण्डों, विधि-विधानों के घटाटोप तुल्य आवरण-अम्बारों को धर्मक्रान्ति के प्रचण्ड पवन से उड़ाकर छिन्न-भिन्न कर धर्मोद्धारक लोकाशाह ने जैन जगत् के जन-जन को जिन प्ररूपित जैन धर्म के वास्तविक स्वरूप का दर्शन कराया । उन्होंने बिना किसी प्रकार के नये मत का सूत्रपात किये, अपनी ओर से एक भी नयी बात अथवा नया शब्द न कह कर केवल सर्वज्ञ-सर्वदर्शी श्रमण भगवान् महावीर द्वारा विश्व के प्राणिमात्र के कल्याणार्थ संसार के समक्ष प्रकट किये गये धर्म के विशुद्ध स्वरूप का गणधरों द्वारा ग्रथित तथा चतुर्दशपूर्वधरों
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