________________
७८८ ।
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
गच्छीय आचार्य ऋषि भाणा के साथ वाद किया और शास्त्रानुसार प्रतिमा को प्रमाणित किया और लुंकों के १५० घर अपने मत (कडुवामत) में किये ।"१ इस प्रकार का उल्लेख कडुवा मत की पट्टावली में उपलब्ध है । कडुवाशाह सामायिक और पौषध के प्रबल समर्थक थे। यदि लोकाशाह ने कभी कहीं सामायिक पौषध का किंचित्मात्र भी विरोध किया होता तो कडुवाशाह इस विषय पर भी ऋषि भाणा से शास्त्रार्थ करते और उस संबंध में उनकी पट्टावली में एतद्विषयक उल्लेख अवश्यमेव होता।
कडुवाशाह के विद्वान् शिष्य रामाकर्णवेधी ने ३२६ पत्रों (६५७ पृष्ठों) के "लुम्पक वृद्ध हुंडी" नामक वृहदाकार ग्रन्थ की रचना की। उसमें लोंकाशाह की मूर्तिपूजा विषयक मान्यता का बड़े विस्तार के साथ वर्णन है। किन्तु उस पूरे ग्रंथ में एक भी ऐसा शब्द नहीं है जिससे इस बात का संकेत तक भी मिलता हो कि लोकाशाह ने कभी सामायिक प्रतिक्रमण और पौषध जैसी पवित्र धर्म क्रिया का विरोध किया हो।
- तपागच्छ आदि अनेक गच्छों की पट्टावलियों में भी केवल यही उल्लेख है "तदानीं च लुकाख्याल्लेखकात् वि० अष्टाधिक पंचदशशत् १५०८ वर्षे जिन प्रतिमोत्थापनपरं लुंकामतं प्रवृत्तम् ।। इन उल्लेखों से भी यही प्रमाणित होता है कि लोकाशाह ने सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध और दान का कभी विरोध नहीं किया। लोकाशाह की लोकप्रियता से क्षुब्ध एवं खिन्न-नितान्त अनुत्तरदायी लेखकों ने धर्मप्राण लोंकाशाह के प्रति धर्मनिष्ठ लोगों की प्रगाढ़ श्रद्धा को ठेस पहुंचाने की दुर्भावना से ही लोंकाशाह के विरुद्ध इस प्रकार का निराधार एवं एकदम झूठा प्रचार किया है।
"लोकाशाह अने धर्म चर्चा" नामक लघीयसी कृति के लेखक ने बिना किसी प्रकार की खोज अथवा छानबीन के ही इस लोक की तीन महती विडम्बनाओं में से “खण्ड खण्डेनु पाण्डित्यम्” इस प्रथम विडम्बना का आश्रय लेकर लिख दिया है कि-५८ बोल लोकाशाह की रचना नहीं अपितु धर्मसिंहजी की रचना है। उन्हें विक्रम सं० १५६४ में क्रियोद्धार करने वाले पार्श्वचन्द्रसूरि की कृति "लुका ना पूछेला तेर प्रश्न अने तेना उत्तरो" के पश्चात् उन्हीं के द्वारा वि० सं० १५७४ में निर्मित "स्थापना पंचाशिका" और वि० सं० १५७५ में पाटण संघ और सभी गच्छों को लिखे गये "उत्सूत्र तिरस्कार नामा-विचार पट:" शीर्षक वाले उनके वृहत् पत्र को पढ़ना चाहिए। ऐसा करने पर उन्हें स्वतः ही अपनी शंका का पूर्णतः समाधान प्राप्त हो जायगा। उन्हें पार्श्वचन्द्रसूरि द्वारा लिखित
१. कडुवामत-गच्छ की पट्टावली, पट्टावली पराग संग्रह, पृष्ठ ४८३ . २. पट्टावली समुच्चय, भाग १, पृष्ठ ६७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org