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लोकाशाह
रूपसी लखम साथे लई, गया प्राणन्द विमल ने पास । ये एकान्ते पूछे तिहां, सूत्र अर्थ सुणाव ।। १८ ।। त० जाय एकान्त बैठा ति हूं, आणन्द विमल प्रसिद्ध । दसमी कालक श्रादे दई, अर्थ पाठ कहिय ॥ १६ ॥ । त० पाठ सुरण - सुरण ने तिहां, बे हु करे विचार ।
म धर्म को रे थापिये, बोले रूपसी पास ||२०|| त० त्रिपोलिया पर बेस ने, करे उपदेश अपार ।
प्रथम वाणी भाखी तिहां, सात से घर श्रावक धार ।। २१ ।। त० एम करि धर्म परूपियो, बूझा केई नर नारि । एहवा अवसर में प्रगटऊ दिल्ली संघ गुर्जर मकार ।। २२ ।। त०
सामान्य श्रुतवर काल खण्ड २ ]
रियलपुर पाटण विषे, निकल्या मारग सार ।। २३ ।। त० तेह तरणां खजानची, (खजानथी) भामो ने भारमल्ल । खेतसी जगरूप जाणिये, डूंगर ने मेघराज ।।२४।। त० पहले दलि थकी ते नीसर्या, आव्या प्रणियलपुर मांहि । लखमसि साह ने त्यां मल्या, दया धर्म सुह ।। २५।। त० सांभली वयण लखमसि तणां, समकित सहु सुध कीध ।
प्रथम भामोसा. भारमल्ल, सुणिय लखमसि वैरण ||२६|| त०
संजम सुं मन आणि दया धर्म प्रसिद्ध ।
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सुध समकित दृढ़ त्यां थई, करता उत्तम काम ||२७||
एहवा अवसर ने विषे, सूरत संघ तब प्राय ।। २८ ।। त०
संघपति साथै सहि, साह जीवराज ए नाम । चार लाख संघ साथ सू, आव्यो पाटण सहर ।। २६ ।। त०
संघपति बाहरे उतर्या, साथे मनुष्य अपार ।
देव गुरु ने पूजवा, गया शहर मझार ॥३०॥ त०
प्रथम जात्रा तेणे करी, पंचासरियो पारसनाथ ।
आनन्द विमल ने वांदवा, चाल्या तिह मन उल्हास ||३१|| त०
देव गुरु ने बांदने जी, संघ ने मांहे तब तांस
लोकागच्छ श्रावक मल्या, साह जीवराज ने पास ||३२|| त०
लोकागच्छ ना श्रावका, संघपति ने पास ।
तें एरणी गांव में केहने पूजिया, कुरण बांद्या गुरुदेव ||३३|| त०
वली संघपति कहे, वो पूज्या पारसनाथ ।
आनन्द विमल ने वांदिया, सीझ्या मन वांछित काज || ३४ ।। त०
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